
दुर्ग – पूरा विश्व जब 5 जून को पर्यावरण दिवस मनाता है, तो सभागारों में भाषणों की गूंज होती है, स्कूलों में पौधारोपण कार्यक्रम आयोजित होते हैं, और सोशल मीडिया पर हरे-भरे संदेशों की भरमार रहती है। लेकिन इन उत्सवों की भीड़ में कहीं खो जाती है उन सच्चे पर्यावरण रक्षकों की आवाज़, जो हर दिन अपनी मेहनत से इस धरती को थोड़ा और स्वच्छ, थोड़ा और सुव्यवस्थित, थोड़ा और रहने योग्य बनाते हैं।
ये वे लोग हैं, जो न तो मंचों पर दिखते हैं, न अखबारों की तस्वीरों में, बल्कि रोज़ सुबह हमारे घरों के कचरे एकत्रित करने वाले गली-गली घूमते रिक्शों से आती हैं, लेकिन इनका योगदान मौसमी नहीं, निरंतर है। ये हैं हमारे असली पर्यावरण रक्षक, सेल-भिलाई इस्पात संयंत्र की टाउनशिप में काम करने वाले सफाईकर्मी।
भिलाई इस्पात संयंत्र की टाउनशिप में हर सुबह पांच बजे जब अधिकांश घरों की खिड़कियों पर नींद की परतें जमी होती हैं, तब सुपरवाइज़र श्रीमती सुनीता वर्मा और उनकी टीम सफाई की जिम्मेदारी उठाए सड़कों पर निकल चुकी होती है। सिर पर टोपी, कंधे पर झोला और मन में एक ही संकल्प, कि उनका शहर साफ और स्वच्छ बना रहे।
सुनीता बताती हैं, “हम बार-बार समझाते हैं कि गीला और सूखा कचरा अलग किया जाए, लेकिन बहुत कम लोग इस पर ध्यान देते हैं। कई बार लोग दरवाज़े पर कचरा देने की बजाय उसे बाद में सड़क पर ही फेंक देते हैं। तब हमें फिर से आकर उसे उठाना पड़ता है।” यह हमारा समय भी ख़राब करता है।
भिलाई की स्वच्छता वीर श्रीमती मालती कुर्रे, जो कई वर्षों से इस सेवा में संलग्न हैं, कहती हैं, “हम भी इंसान हैं। काम कर रहे हैं, आपके लिए, समाज के लिए, पर्यावरण के लिए। पर कुछ लोग हमसे बात करना भी ज़रूरी नहीं समझते, मानो जैसे हम दिखते ही नहीं।” उनकी बातों में शिकायत नहीं, बल्कि एक सच्चा सामाजिक संकेत है, कि यदि पर्यावरण की रक्षा करनी है, तो सबसे पहले हमें अपने नजरिए की सफाई करनी होगी।
भिलाई इस्पात संयंत्र का नगर सेवाएं विभाग (टीएसडी) न केवल कचरा प्रबंधन, बल्कि रीसाइक्लिंग और कंपोस्टिंग की योजनाओं को भी क्रियान्वित कर रहा है। गीले कचरे से खाद बनाकर संयंत्र के बगीचों में उपयोग किया जाता है। सूखे कचरे के लिए अलग योजना है, जिसमें उसे इकट्ठा करने वाले सफाईकर्मियों को अतिरिक्त प्रोत्साहन राशि मिल जाती है।
यह पहल एक स्थायी पर्यावरणीय संरचना की दिशा में एक सराहनीय कदम है। परन्तु इन प्रयासों की सफलता का केंद्रबिंदु है “नागरिक सहयोग”। इस पूरे प्रयास की सफलता इस पर निर्भर करती है कि शहरवासी कितना सहयोग करते हैं। अगर हर परिवार गीले और सूखे कचरे को अलग-अलग दे, समय पर कचरा बाहर रखे, और सफाईकर्मियों के साथ सम्मान से पेश आए, तो यह व्यवस्था और भी बेहतर हो सकती है।
पर्यावरण की रक्षा सिर्फ पौधे लगाने से नहीं होती, यह एक दैनिक अभ्यास है, जो हमारे घरों से शुरू होकर हमारे समाज तक जाता है। हर बार जब हम अपने कचरे को जिम्मेदारी से बाहर रखते हैं, हर बार जब हम सफाईकर्मियों को एक मुस्कान या धन्यवाद देते हैं, तो हम एक हरा-भरा और स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित करते हैं।
इस पर्यावरण दिवस पर आइए, हम सिर्फ पौधे ही न लगाएं, एक नई सोच भी बोएं। अगली बार जब आप किसी सफाईकर्मी को रिक्शा खींचते या झाड़ू लगाते देखें, तो उसे सिर्फ एक श्रमिक न समझें। समझें कि वह इस शहर की आत्मा को साफ-सुथरा बनाए रखने का मूक प्रण ले चुका है। अगर हम वाकई चाहते हैं कि हमारा भिलाई स्वच्छता में देश के लिए एक आदर्श बने, तो हमें भी अपने हिस्से का योगदान देना होगा, सोच से, व्यवहार से, और सम्मान से। यही सच्ची पर्यावरण-सेवा है। यही विश्व पर्यावरण दिवस की वास्तविक भावना है।
संपूर्ण खबरों के लिए क्लिक करे