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The Freelancer Review: यहां मिलेगी ISIS की डीटेल्स, रहेगा अधूरी कहानी के पूरे होने का इंतजार…

Web Series The Freelancer: निर्माता-निर्देशक नीरज पांडे ने अ वेडनसडे से लेकर स्पेशल 26 और स्पेशल ऑप्स तक अपनी अलग पहचान बनाई है. अब वह नई वेब सीरीज के साथ आए हैं, द फ्रीलांसर (The Freelancer). आम तौर पर हॉलीवुड की तर्ज पर हिंदी में ऐसे खूंखार-प्रोफेनशल सिपाही देखने नहीं मिलते, जो भाड़े पर काम करते हैं. दुनिया का कोई भी देश उनकी सेवा ले सकता है. वे फ्रीलांसर होते हैं. नीरज पांडे की वेब सीरीज द फ्रीलांसर में आप मिलते हैं अविनाश कामथ (मोहित रैना) से. जिसने मुंबई पुलिस (Mumbai Police) के साधारण अफसर होने के बाद लंदन जाकर विशेष ट्रेनिंग ली और अब दुनिया के सबसे खतरनाक सैनिकों में से एक है. यह कहानी अविनाश के सीरिया मिशन की है.

सीरिया वाया इस्तांबुल

द फ्रीलांसर के केंद्र में आलिया (कश्मीरा परदेशी) है. जिसकी नई-नई शादी (Newly Married) हुई है. वह विदेश में पढ़ती थी और वहीं उसे मोहसिन फजल (नवनीत मलिक) से प्यार हुआ. मोहसिन का परिवार मलेशिया में रहता है. इंडिया में शादी के बाद पूरा परिवार मलेशिया लौटने की जगह इस्तांबुल होता हुई, सीरिया (Syria) पहुंच जाता है. जहां आईएसआईएस (ISIS) की सत्ता है. आलिया के सामने धीरे-धीरे यह बात खुलती है कि मोहसिन का परिवार आईएसआईएस में शामिल हो गया. उसके पिता इनायत खान (सुशांत सिंह) मुंबई पुलिस में थे.

अविनाश और इनायत पक्के दोस्त भी थे, मगर दोनों ही नौकरी से बर्खास्त हुए. इसकी अलग बैकस्टोरी है. यहां सवाल आलिया को सीरिया से बचाकर लाने का है. जिम्मेदारी अविनाश कामथ ने अपने कंधों पर पर ली है क्योंकि आलिया उसके दोस्त की बेटी है. अविनाश आतंकवाद की दुनिया के कोने-कोने की खबर रखने वाले एक्सपर्ट डॉ. आरिफ खान (अनुपम खेर) की मदद से आलिया को आईएसआईएस के चंगुल से निकालने की कोशिश में है. क्या यह जोखिम भरा मिशन कामयाब होगाॽ

इस्लामिक स्टेट का चंगुल

डिज्नी हॉटस्टार पर सीरीज के अभी सिर्फ चार एपिसोड आए हैं. प्रत्येक लंबाई औसतन 50 से 60 मिनट है. आगे की कहानी आने वाले एपिसोड्स में पता चलेगी. यह वेब सीरीज अमेरिका में रहने वाले शिरीष थोरात की किताब अ टिकट टू सीरिया पर आधारित है. द फ्रीलांसर देखते हुए आपको द केरल स्टोरी (The Kerala Story) और हाल में रिलीज हुई फिल्म अकेली (Akeli) याद आती है. जिनमें आईएसआईएस और उसके चंगुल से छूटने की कोशिश करती भारतीय युवतियां हैं. लेकिन इन दो फिल्मों के विपरीत नीरज पांडे (Neeraj Pandey) की यह वेब सीरीज आपको कहानी के साथ ढेर सारे डीटेल्स देती है. ये सूचनाएं इतनी रफ्तार से चलती हैं कि उन पर आपकी नजर भी टिक नहीं पाती और धीरे-धीरे कहानी में गैर-जरूरी लगने लगती हैं.

बाकी कुछ सवाल

यूं तो सीरीज की कहानी एक खास फ्रेम में है और तेज रफ्तार से चलती है. मगर बीच-बीच में अचानक थम जाती है. फ्लैशबैक में चली जाती हैं. इससे मुख्य कहानी में खलल पैदा होता है. इसके अलावा कुछ सवालों के जवाब नहीं मिलते. जैसे एक अच्छा-भला पढ़ा-लिखा-मॉडर्न परिवार देखते-देखते कुछ ही मिनटों में कैसे कट्टर बन जाता हैॽ अचानक कैसे उसे अपनी आधुनिक जिंदगी पाप लगने लगती है और वह खुद को पूरी तरह से बदल लेता हैॽ

इसी तरह यहां दिखाया गया है कि पुलिस और सैनिक के रूप में काम करने वाले हीरो की निजी जिंदगी पूरी तरह से बर्बाद है. हर सीरीज में यही होता है. इस लिहाज से द फ्रीलांसर हीरो की नई तस्वीर नहीं दिखाती. सीरीज में फ्रीलांसर का पहला मिशन बच्चों का खेल जैसा है. अमेरिका की कड़ी सुरक्षा में रखे गए एक आदमी को अविनाश और उसकी टीम अफगानिस्तान में खेल-खेल में मार कर लौट आती है और उस पर आगे कोई बात ही नहीं होती.

उतार-चढ़ाव के बीच

एक तरफ सीरीज में आईएसआईएस से जुड़े छोटे-छोटे डीटेल देने की कोशिश है, वहीं सवालों और तर्कों पर ध्यान नहीं दिया गया है. हालांकि किरदारों को अच्छे-से लिखा गया है. लेकिन अनुपम खेर के रोल को और अधिक विस्तार की जरूरत मालूम पड़ती है. द फ्रीलाइंसर की शुरुआत झटकों और उतार-चढ़ाव के बीच होती है, परंतु धीरे-धीरे संभल जाती है. अगर आपको ऐसे थ्रिल वाले मिशन की कहानियां पसंद आती हैं, तो द फ्रीलांसर निराश नहीं करेगी. मोहित रैना अपने किरदार को ठीक से निभाने की कोशिश में कहीं-कहीं लड़खड़ाते हैं. उनके बदन में एजेंट वाला लचीलापन नजर नहीं आता. कश्मीरा परदेसी, अनुपम खेर, नवनीत मलिक और आयशा रजा मिश्रा ने अपनी भूमिकाएं अच्छे ढंग से निभाई हैं. इन एपिसोड्स को देखने के बाद दूसरे हिस्से को देखने की इच्छा बरकरार रहती है.

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