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‘Dermatomyositis’ त्वचा में सूजन जैसे सामान्य लक्षण वाली ये बीमारी है जानलेवा, संकेतों को ना करें इग्नोर….

‘दंगल’ गर्ल सुहानी भटनागर की मौत की खबर ने जहां सबको हैरान करके रख दिया है, वहीं एक रेयर बीमारी के प्रति जागरूकता की जरूरत पर भी प्रकाश डाला है. बता दें 19 साल की एक्ट्रेस की मौत डर्मेटोमायोसाइटिस नाम की रेयर ऑटोइम्यून डिजीज से हुई है.

यह बीमारी शुरुआत में स्किन और स्केलेटन मसल्स को प्रभावित करता है. इसके लक्षण इतने मामूली होते हैं कि इसके निदान में काफी समय लग जाता है. यही चीज ही सुहानी भटनागर के मौत का कारण बनी. एक्ट्रेस के पिता ने मीडिया से बातचीत में बताया कि सुहानी 2 महीने से लक्षणों से ग्रसित थीं लेकिन इसका डायग्नोसिस डॉक्टर ने दो हफ्ते पहले किया.

ना करें नजरअंदाज रेयर बीमारी के ये सामान्य लक्षण

डर्माटोमायोसिटिस का सबसे शुरुआती लक्षण चेहरे, पलकों पर, नाखून के आसपास की जगह, पोर, कोहनी, घुटने, छाती और पीठ में लाल दाने उठना है. इसके साथ ही अक्सर मांसपेशियों में कमजोरी, सूजन, सांस लेने में परेशानी, निगलने में कठिनाई इसमें शामिल है.

इसलिए होती है ऑटोइम्यून डिजीज

TOI के साथ बातचीत में एम्स के रुमेटोलॉजी विभाग की प्रोफेसर और प्रमुख डॉ. उमा कुमार ने बताया कि ऑटोइम्यून विकार तब होते हैं जब शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से स्वस्थ शरीर के ऊतकों पर हमला करती है और उन्हें नष्ट कर देती है। इस प्रक्रिया को धीमा करने के लिए सूजन-रोधी और  दवाएं दी जाती हैं। अधिकांश मरीज उपचार के लिए अच्छी प्रतिक्रिया देते हैं और केवल 5% में फूलमिनेंट कोर्स होता है.

लाइफस्टाइल की ये आदतें भी जिम्मेदार

डॉक्टर बताती हैं कि वैसे तो ऑटोइम्यून डिसऑर्डर का कोई सटीक कारण नहीं पता है, लेकिन शोध से पता चलता है कि यह लाइफस्टाइल के कई कारकों यह समस्या शुरू हो सकती है. इसमें बार-बार होने वाला वायरल इंफेक्शन, धूम्रपान, वायु प्रदूषण, कुछ दवाएं और पुराना तनाव। इसके अलावा आनुवांशिक कारक भी इसमें अहम रोल निभाते हैं.

इन लोगों को रहता है ज्यादा खतरा

यह बीमारी 40-60 के उम्र के वयस्कों और 5-15 वर्ष के बच्चों को में ज्यादा होती है. महिलाओं में इस बीमारी का जोखिम पुरुषों से दोगुना होता है. इसके अलावा हेल्थ विशेषज्ञों के अनुसार, कोविड-19 के मरीज रह चुके लोगों में भी इस बीमारी का रिस्क दूसरों से ज्यादा होता है.

कैसे करें बचाव

न्यूरोलॉजिस्ट डॉ शमशेर द्विवेदी बताते हैं कि ऑटोइम्यून विकारों के लिए कोई रोकथाम नहीं है. समय पर इसका निदान ही ज्यादातर मामलों में बीमारी की गंभीरता को कम करने में मदद कर सकती है.

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