छत्तीसगढ़

गोबर से बिजली : छत्तीसगढ़ में ‘गोधन’ से ‘बिजलीधन’

गोबर से बिजली । गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार नव-विचारों के साथ, नव-प्रयोगों के साथ, नव-कार्यों के साथ निरंतर आगे बढ़ रही है. भूपेश सरकार की सोच है कि नवा छत्तीसगढ़ एक स्वावलंबी छत्तीसगढ़, आत्मनिर्भर छत्तीसगढ़ बने. एक ऐसा छत्तीसगढ़ बने, जहाँ हर हाथ काम हो, जहाँ हर गाँव विकसित गाँव हो, जहाँ गाँव का उत्पाद ही गाँव का बाजार-व्यापार हो, जहाँ ग्रामीणों की अपनी अर्थव्यवस्था, अपनी आर्थिक ताकत, मजबूती का आधार हो. जहाँ हर किसी का सपना साकार हो.

वो सपना है क्या ? जाहिर है सपना यही होगा कि गाँव में भी शहरों की तरह सभी सुविधाएँ हो. अच्छे स्कूल, अस्पताल, साफ पानी, अच्छी सड़क और कभी न जाने वाली बिजली. जहाँ समृद्ध खेती, अच्छा व्यापार और सबके लिए रोजगार हो. भूपेश सरकार ने इसी सोच के साथ अपने काम-काज की शुरुआत की थी और आज करीब 3 साल के इस कार्यकाल में इसी सोच के साथ आगे भी बढ़ रही है.

गोबर से बिजली : छत्तीसगढ़ में ‘गोधन’ से ‘बिजलीधन’

भूपेश सरकार ने ऐसी योजनाओं को लागू किया कि जिससे की गाँवों की सूरत बदले. जिससे ग्रामीणों की जरूरत गाँवों से ही पूरी हो. जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बल मिले. जिससे की गाँवों की हर समस्या को हल मिले. आज गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ में यही देखने को मिल भी रहा है.

सरकार ने कर्जा माफी के साथ, 25 सौ रुपये समर्थन मूल्य पर धान खरीदी, राजीव गांधी किसान न्याय योजना, नरवा-गरवा, घुरवा-बारी और गोधन को जिस तरह खेती, किसानी और गाँवों के विकास के लिए हथियार बनाया, आज वही राज्य में गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ का सबसे मजबूत आधार बनकर उभरा है.गोबर से बिजली : छत्तीसगढ़ में ‘गोधन’ से ‘बिजलीधन’

कर्जा माफी से जहाँ किसान चिंता मुक्त हुए, तो वहीं 25 सौ रुपये से आर्थिक मजबूती भी मिली. नरवा-गरवा से जहाँ ग्रामीण स्तर पर ही सिंचाई की व्यवस्था, पशुओं को चारा और संरक्षण मिला तो, घुरवा-बारी से खातू-माटी के साथ महिला समूहों को स्व-रोजगार मिला. जबकि गोधन योजना ने तो गोबर को मूल्यवान ही बना दिया. गोबर आज सिर्फ घर लिपने और छेना तक सीमित नहीं रहा. बल्कि गोबर अब जैविक खाद के साथ-साथ अन्य कई तरह के उत्पादों के लिए सबसे महत्वपूर्ण हो गया है. यहाँ तक कि गोबर से अब बिजली तक बनाई जा रही है. कह सकते हैं कि छत्तीसगढ़ का ‘गोधन’, अब भारत का ‘बिजलीधन’ हो गया है.

गोबर से बिजली : छत्तीसगढ़ में ‘गोधन’ से ‘बिजलीधन’

गौठानों में गोबर से विद्युत उत्पादन परियोजना का किया शुभांरभ

दरअसल 2 अक्टूबर गाँधी जयंती के मौके पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बेमेतरा जिला मुख्यालय के बेसिक स्कूल ग्राउंड में आयोजित किसान सम्मेलन के दौरान छत्तीसगढ़ राज्य के गौठानों में गोबर से बिजली उत्पादन की परियोजना का वर्चुअल शुभारंभ किया था. शुभारंभ के दौरान मुख्यमंत्री ने बेमेतरा जिले के राखी गौठान, दुर्ग जिले के सिकोला तथा रायपुर जिले के बनचरौदा में गोबर से बिजली उत्पादन करने वाली स्व-सहायता समूह की महिलाओं एवं गौठान समितियों के सदस्यों से उनकी आयमूलक गतिविधियों के बारे में चर्चा की थी. उन्हें गोबर से विद्युत उत्पादन की यूनिट शुरू होने पर बधाई और शुभकामनाएं दी.

गोबर से बिजली : छत्तीसगढ़ में ‘गोधन’ से ‘बिजलीधन’

गोबर से अब गौठान और महिला समूहों को दोहरा लाभ

मुख्यमंत्री का कहना है कि गोबर से वर्मी कम्पोस्ट के उत्पादन से जितना लाभ महिला समूहों को हो रहा है, अब बिजली उत्पादन शुरू होने से उन्हें दोगुना लाभ होगा. उनका यह भी कहना है कि छत्तीसगढ़ सरकार राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के ग्राम सुराज की परिकल्पना को साकार करते हुए गांवों को स्वावलंबी बनाने में जुटी है. अब छत्तीसगढ़ के गांव गोबर से विद्युत उत्पादन के मामले में स्वावलंबी होंगे. मुख्यमंत्री ने कहा कि एक समय था जब विद्युत उत्पादन का काम सरकार और बड़े उद्योगपति किया करते थे. अब हमारे राज्य में गांव के ग्रामीण टेटकू, बैशाखू, सुखमती, सुकवारा भी बिजली बनाएंगे और बेचेंगे. मुख्यमंत्री ने कहा कि गोबर खरीदी का मजाक उड़ाने वाले लोग अब इसकी महत्ता को देख लें.

गोबर से बिजली : छत्तीसगढ़ में ‘गोधन’ से ‘बिजलीधन’

उन्होंने यह भी कहा है कि छत्तीसगढ़ राज्य के सभी गौठानों में गोबर की बिजली उत्पादन शुरू किया जाएगा. समूह की महिलाएं गोबर से बिजली बनाएंगी और बेचेंगी. उनकी बिजली सरकार खरीदेगी. गौठानों में स्थापित रूरल इंडस्ट्रियल पार्क में विभिन्न प्रकार के उत्पादों को तैयार करने के लिए लगी मशीनें भी गोबर की बिजली से चलेंगी. गौठान अब बिजली के मामले में स्वावलंबी होंगे.

गौठानों में लगी एक यूनिट से 150 किलोवाट उत्पन्न होगी बिजली

सरकार की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक सुराजी गांव योजना के तहत छत्तीसगढ़ राज्य के लगभग 6 हजार गांवों में गौठानों का निर्माण कराकर उन्हें रूरल इंडस्ट्रियल पार्क के रूप में विकसित किया गया है, यहां गोधन न्याय योजना के तहत दो रूपए किलो में गोबर की खरीदी कर बड़े पैमाने पर जैविक खाद का उत्पादन एवं अन्य आयमूलक गतिविधियां समूह की महिलाओं द्वारा संचालित की जा रही है. अब गोबर से विद्युत उत्पादन की परियोजना के प्रथम चरण में बेमेतरा जिले के राखी, दुर्ग के सिकोला और रायपुर जिले के बनचरौदा में गोबर से विद्युत उत्पादन की यूनिट लगाई गई है. एक यूनिट से 85 क्यूबिक घन मीटर गैस बनेगी. चूंकि एक क्यूबिक घन मीटर से 1.8 किलोवाट विद्युत का उत्पादन होता है. इससे एक यूनिट में 153 किलोवाट विद्युत का उत्पादन होगा. इस प्रकार उक्त तीनों गौठानों में स्थापित बायो गैस जेनसेट इकाईयों से लगभग 460 किलोवाट विद्युत का उत्पादन होगा, जिससे गांवों, गौठानों में प्रकाश व्यवस्था के साथ-साथ वहां स्थापित मशीनों का संचालन हो सकेगा. गोबर से विद्युत उत्पादन की यूनिट से बिजली उत्पादन के बाद शेष स्लरी के पानी का उपयोग बाड़ी और चारागाह में सिंचाई के लिए होगा तथा बाकी अवशेष से जैविक खाद तैयार होगी. इस तरह से देखा जाए तो गोबर से पहले विद्युत उत्पादन और उसके बाद शत-प्रतिशत मात्रा में जैविक खाद प्राप्त होगी. इससे गौठान समितियों और महिला समूहों को दोहरा लाभ मिलेगा.

गोबर से बिजली : छत्तीसगढ़ में ‘गोधन’ से ‘बिजलीधन’

सरकारी आँकड़ों के मुताबिक छत्तीसगढ़ सरकार की सुराजी गांव योजना के तहत गांवों में 6112 गौठान पूर्ण रूप से निर्मित एवं संचालित है. गौठानों में अब तक 51 लाख क्विंटल से अधिक की गोबर खरीदी की जा चुकी है, जिसके एवज में ग्रामीणों, पशुपालकों को 102 करोड़ रूपए का भुगतान किया जा चुका है. गोबर से गौठानों में अब तक 12 लाख क्विंटल से अधिक वर्मी कम्पोस्ट, सुपर कम्पोस्ट खाद का उत्पादन एवं विक्रय किया जा चुका है.

गोबर से बिजली : छत्तीसगढ़ में ‘गोधन’ से ‘बिजलीधन’

वास्तव में जिस तरह से छत्तीसगढ़ में सरकार गाँवों को प्राथमिकता में लेकर काम कर रही है, उससे गाँधी के ग्राम स्वराज्य का सपना साकार होते हुए दिखाई दे रहा है. छत्तीसगढ़ का ‘गोधन’ आज भारत का ‘बिजलीधन’ बन रहा है. बिजली के लिए जो अभी सबसे जरूरी स्त्रोत है, वह कोयला है. लेकिन अब गोबर से कोयले की निर्भरता कम होगी. इससे हर राज्य को फायदा होगा. देश को एक नया और बेहतर विकल्प बिजली के लिया मिला है, जिसपर निश्चित ही अब अन्य राज्य की सरकारे जरूर काम करना चाहेंगी.

 

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