छत्तीसगढ़दुर्ग

ऑनलाइन विधिक जागरूकता शिविर मेें अतिरिक्त जिला न्यायधीश दुर्ग ने कहा…

दुर्ग – कोरोना संक्रमण काल की अवधि को देखते हुए फिजिकल (भौतिक) रूप से विधिक साक्षरता शिविर का आयोजित नहीं किया जा रहा है । समाज में बढते अपराधों को देखते हुए, विधिक रूप से जागरूक किया जाना आवश्यक प्रतीत हो रहा है, इन्हीं परिष्टियों को ध्यान में रखते हुए श्री राजेश श्रीवास्तव जिला एवं सत्र न्यायधीश जिला विधिक सेवा प्राधिकरण दुर्ग के मार्गदर्शन व निर्देशन में दिनांक 16 जून से 30 जून तक दुर्ग जिले के विभिन्न विद्यालयों के विद्यार्थियों को जिला शिक्षा विभाग के समन्वय से ऑनलाइन विधिक जागरूकता शिविर किया जा रहा है।

ऑनलाइन विधिक जागरूकता शिविर मेें अतिरिक्त जिला न्यायधीश दुर्ग ने कहा...

ऑनलाइन विधिक जागरूकता शिविर के इस कड़ी में आज धमधा ब्लाॅक के दो शासकीय विद्यालयों में श्रीमती नीरू सिंह सिंग अतिरिक्त जिला न्यायधीश दुर्ग के द्वारा विभिन्न जागरूकता शिविर आयोजित किये गए। उन्होंने बताया की अच्छी शिक्षा जीवन में बहुत से उद्देश्यों को प्रदान करती है जैसे व्यक्तिगत उन्नति को बढ़ावा, सामाजिक स्तर में बढ़ावा, सामाजिक स्वस्थ में सुधार, आर्थिक प्रगति, राष्ट्र की सफलता, जीवन में लक्ष्यों को निर्धारित करना, हमें सामाजिक मुद्दों के बारे में जागरूक करना और पर्यावरण समस्याओं को सुलझाने के लिए हल प्रदान करना और अन्य सामाजिक मुद्दे आदि।

ऑनलाइन विधिक जागरूकता शिविर मेें अतिरिक्त जिला न्यायधीश दुर्ग ने कहा...

विद्या एक ऐसा धन है जिसे ना तो कोई चुरा सकता है और ना ही कोई छीन सकता। यह एक मात्र ऐसा धन है जो बाँटने पर कम नहीं होता, बल्कि की इसके विपरीत बढ़ता ही जाता है। हमने देखा होगा कि हमारे समाज में जो शिक्षित व्यक्ति होते हैं उनका एक अलग ही मान सम्मान होता है और लोग उन्हें हमारे समाज में इज्जत भी देते हैं। इसलिए हर व्यक्ति चाहता है कि वह एक साक्षर हो प्रशिक्षित हो इसीलिए आज के समय में हमारे जीवन में पढ़ाई का बहुत अधिक महत्व हो गया है। इसीलिए आपको यह याद रखना है कि शिक्षा हमारे लिए बहुत जरूरी है इसकी वजह से हमें हमारे समाज में सम्मान मिलता है जिससे हम समाज में सर उठा कर जी सकते हैं।

ऑनलाइन विधिक जागरूकता शिविर मेें अतिरिक्त जिला न्यायधीश दुर्ग ने कहा...

उन्होंने ने बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम के बारे में, बाल विवाह से हो रही परेशानियां के संबंध में जानकारी प्रदान की। उन्होंने बताया कि बाल विवाह बच्चों के अधिकारों का अतिक्रमण करता है जिससे उन पर हिंसा, शोषण तथा यौन शोषण का खतरा बना रहता है। बाल विवाह लड़कियों और लड़कों दोनों पर असर डालता है, लेकिन इसका प्रभाव लड़कियों पर अधिक पड़ता हैं। बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम के अंतर्गत 21 वर्ष से कम आयु के पुरुष या 18 वर्ष से कम आयु की महिला के विवाह को बाल विवाह की श्रेणी में रखा जाएगा। इस अधिनियम के अंतर्गत बाल विवाह को दंडनीय अपराध माना गया है। साथ ही बाल विवाह करने वाले वयस्क पुरुष या बाल विवाह को संपन्न कराने वालों को इस अधिनियम के तहत दो वर्ष के कठोर कारावास या 1 लाख रूपए का जुर्माना या दोनों सजा से दंडित किया जा सकता है किंतु किसी महिला को कारावास से दंडित नहीं किया जाएगा। इस अधिनियम के अंतर्गत अवयस्क बालक के विवाह को अमान्य करने का भी प्रावधान है। बाल विवाह, समाज की जड़ों तक फैली बुराई, लैंगिक असमानता और भेदभाव का ज्वलंत उदहारण है। अच्छी शिक्षा से बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं से बचा जा सकता है।

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