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अंतर्राष्‍ट्रीय महिला दिवस : आईपीएस बनने के लिए खुद से ली थी चुनौती, वरिष्‍ठ आईपीएस अधिकारी शिखा गोयल की सफलता की कहानी

एंटी करप्‍शन ब्‍यूरो विभाग की निदेशक शिखा गोयल ने बतौर एडिशनल कमिश्‍नर ऑन व्‍हील्‍स, भरोसा और शी जैसी तेलंगाना सरकार की लोकप्रिय योजनाओं को जन-जन तक पहुंचाया. इसके अलावा, सीआईएसएफ में अपने कार्यकाल के दौरान महिला कर्मियों को पिकेती तिर्सिया काली मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण दिलाने का श्रेय भी आईपीएस अधिकारी शिखा गोयल को ही जाता है.

अंतर्राष्‍ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर आज हम आपको एक बेहद खास शख्सियत से रूबरू कराने जा रहे हैं. इन शख्सियत का नाम है शिखा गोयल. 1994 बैच की आईपीएस अधिकारी शिखा गोयल वर्तमान समय में तेलंगाना में एंटी करप्‍शन ब्‍यूरो के निदेशक के पद पर कार्यरत हैं.

न केवल पुलिस बल के भीतर, बल्कि समाज में महिला सशक्तिकरण की मिशाल बन चुकी शिखा गोयल की शख्‍स‍ियत का अंदाज आप इसी बात से लगा सकते हैं कि जम्‍मू और कश्‍मीर में अपने कार्यकाल के दौरान बतौर एडिशनल एसपी उन्‍होंने एक एसपी रैंक के अधिकारी को गिरफ्तार किया था. शिखा गोयल की सख्‍त विवेचना के चलते सेवक सिंह नामक इस एसपी को कोर्ट ने उम्र कैद की सजा सुनाई थी.

केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के दौरान, सीआईएसएफ की महिला कॉन्‍स्‍टेबल्‍स को पिकेती तिर्सिया काली नामक मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण दिलाने वाली वरिष्‍ठ आईपीएस अधिकारी शिखा गोयल ऐसे युवाओं के लिए मिशाल हैं, जो खुद को बेहद औसत दर्जे का छात्र मानते हैं और सिविल सर्विसेज परीक्षा को अपनी पहुंच से बाहर मानते हैं.

वहीं, आंध्र प्रदेश में अपने कार्यकाल के दौरान सबसे अधिक नक्‍सलियों का सरेंडर कराने वाली आईपीएस अधिकारी शिखा गोयल ऐसी युवतियों के लिए भी खास तौर पर मिशाल हैं, जिन्‍होंने सामाजिक दायरे के चलते खुद को घर के आखिरी कमरे के पर्दे के पीछे छिपा रखा है. इतना ही नहीं, तेलंगाना सरकार की लोकप्रिय योजना ‘वीमेन ऑन व्हील्स’, ‘भरोसा’ और ‘शी’ का जन-जन तक पहुंचाने का श्रेय भी आईपीएस अधिकारी शिखा गोयल को जाता है.

वरिष्‍ठ आईपीएस अधिकारी शिखा गोयल की सफलता की कहानी उन्‍हीं की जुबानी ….

मेरा जन्‍म उत्‍तर प्रदेश के मेरठ शहर में हुआ था. चूंकि मेरे पिता जी दिल्‍ली के इंडियन एग्रीकल्‍चर रिसर्च इंस्‍टीट्यूट में सीनियर साइंटिस्ट थे, लिहाजा हमारी पूरी पढ़ाई दिल्‍ली में ही रहकर पूरी हुई. नौवीं कक्षा तक पढ़ाई से मेरी कोई खास दोस्‍ती नहीं थी. सच मानें, नवीं कक्षा तक मैंने कभी पढ़ाई की ही नहीं. चूंकि उस दौरान 10वीं की बोर्ड परीक्षा एक हउव्‍वा की तरह होती थी, तब पहली बार बोर्ड परीक्षाओं का डर लगा.

सच्‍चाई यही है कि 10वीं की बोर्ड परीक्षा के हउव्‍वा और डर की वजह से पहली बार मैंने वास्‍तविकता में पढ़ाई की. उस साल पहली बार मैंने मन लगाकर मेहनत के साथ पढ़ाई की और जब रिजल्‍ट आया तो आप यकीन नहीं करेंगे कि मैं खुद सप्राइज्‍ड थी. मेरे पैरेंट्स, मेरे टीचर्स हर कोई सप्राइज्‍ड था.

गेम चेंजर थी 10वीं की बोर्ड परीक्षा

10वीं की परीक्षा मेरे जीवन में गेम चेंजर की तरह थी. मैंने यह परीक्षा न केवल बहुत अच्‍छे अंकों के साथ उत्‍तीर्ण की थी, बल्कि मैं देश के टॉप 10 स्‍टूडेंट्स में एक थी. 10वीं के रिजल्‍ट को देखने के बाद मुझे एहसास हुआ कि मैं भी कुछ कर सकती हूं. इससे पहले बताऊं कि जैसे मुझसे बड़े मेरे बड़े भाई हैं, वह पहली क्‍लास से ही इंटेलीजेंट वाली कैटेगरी में थे. वह हमेशा अपनी क्‍लास में फस्‍ट या सेकेंड पोजीशन में रहते थे.

वहीं, मेरी गिनती एक बेहद नार्मल और एवरेज स्‍टूडेंट के रूप में थी. 10वीं के रिजल्‍ट के बाद खुद से सोचना शुरू किया कि मैं भी कुछ कर सकती हूं. इस रिजल्‍ट ने मुझे यह आत्मविश्वास दिया कि हां आप भी हार्ड वर्क कर सकते हैं. खुद ब खुद मेरा एके‍डिमिक की तरफ रूझान हुआ. मुझे आज भी लगता है कि बोर्ड परीक्षा का डर न लगा होता, तो शायद यह पता ही नहीं चलता कि हम भी पढ़ सकते हैं या मुझमे इंटेलीजेंस है.

जब पूरा हुआ खुद से लिया चैलेंज

स्‍कूलिंग के बाद, मैंने दिल्‍ली के मिरांडा हाउस कॉलेज से बॉटनी में बीएससी ऑनर्स, दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय से बॉटनी में ही एसएससी और फिर माइक्रो बाइलॉजी में एम.फिल किया. इसी बीच, जब दिमाग में आया कि कुछ करना है, अपने पैरों में खड़ा होना है तो एक बार मेरे दिमाग में घर कर गई थी कि जॉब करनी है तो टॉप मोस्‍ट करनी है या फिर नहीं करनी है.

इससे पहले, घर में मेरे बड़े भाई का चयन सिविल सर्विसेज के लिए हो चुका था, इसलिए घर में सिविल सर्विसेज को लेकर एक अच्‍छा माहौल था. इसी बीच, मेंरे कुछ कॉलेज फ्रेंड्स सिविल सर्विसेज के लिए बैठ रहे थे, तभी मैंने भी यूपीएससी की परीक्षा में बैठने का फैसला किया. मैंने यूपीएससी की फॉरेस्‍ट सर्विस और सिविल सर्विस के लिए एक साथ एग्‍जाम दिया और सबसे पहले मेरा चयन फॉरेस्ट सर्विस के लिए हो गया.

एक के बाद एक पूरे होते गए सपने

फॉरेस्‍ट सर्विस ज्‍वाइन करने के बाद मैं फॉरेस्‍ट एकेडमी में थी, तभी सिविल सर्विसेज का रिजल्‍ट आया और मेरा सेलेक्‍शन इंडियन पुलिस सर्विस के लिए हो गया. सामान्‍यत: लोग मुझसे पूछते हैं कि आपने पुलिस सर्विस को दूसरे विकल्‍प के तार पर चुना था. या यह भी कहा जाता है कि आईएएस नहीं मिला तो आईपीएस ले ली. तो, यहां मैं कहना चाहूंगी कि पुलिस सर्विस शुरू से मेरी पहली प्राथमिकता थी.

आईपीएस के लिए चयन होने से पहले मैं फॉरेस्‍ट सर्विस ज्‍वाइन कर चुकी थी, जो कि एक एलीट ऑल इंडिया सर्विस है. यह नौकरी मेरी पढ़ाई के अनुरूप थी, बावजूद इसके मैंने आईपीएस जानने का फैसला किया. पुलिस की नौकरी मेरे लिए बाई च्‍वाइस थी. मेरे लिए फॉरेस्‍ट सर्विस से पुलिस में जाना बेहद कॉन्सियस डिसीजन था.

क्‍यों लिया पुलिस की नौकरी का फैसला

पुलिस ज्‍वाइन करना मेरे लिए लगभग ऑपेजिट अटैक्‍शन जैसा केस था. दरअसल, शुरू से मेरा व्‍यक्तित्‍व बेहद अंतर्मुखी रहा है. मैं एक खुद में सीमित रहने वाली लड़की थी. न ही मुझे आउट डोर का शौक था और न ही मैं कोई स्‍पोर्ट्स खेलती थी. मैं बेहद बचपन काफी प्रोटेक्टिव था. मसलन, कहीं बगल के बाजार से कुछ लाना भी होता था, तो भाई को बोलते थे ले आओ.

बचपन में उन जैसी लड़कियों में थी कि घर में कोई गेस्‍ट आए तो कमरे के अंदर पर्दे के पीछे छिप जाए. ऐसे में पुलिस की नौकरी मेरे व्‍यक्तित्‍व से न केवल बिल्‍कुल विपरीत थी, बल्कि मानसिक और शारीरिक तौर पर भी बेहद चुनौती से भरी थी. आप जानते ही हैं कि अच्‍छी-अच्‍छी लड़कियां भी पुलिस में जाने से पहले चार बार सोंचती हैं. बट आई वाज स्‍ट्रीमली अट्रैक्‍टेड टू दिस पार्ट…

जम्‍मू और कश्‍मीर था पहला काडर

मेरा पहला काडर जम्‍मू और कश्‍मीर था. मेरे बैच से पहले तक केंद्र सरकार की पॉलिसी थी कि महिला आईपीएस अधिकारियों को पूर्वोत्‍तर राज्‍यों के साथ-साथ जम्‍मू और कश्‍मीर नहीं भेजा जाएगा. पांच साल के बाद हमारा बैच पहला था, जिसमें महिला आईपीएस अधिकारी को जम्‍मू और कश्‍मीर में तैनात किया गया था.

चूंकि, जम्‍मू और कश्‍मीर की गिनती डिस्‍टर्बिंग स्‍टेट्स में होती है, लिहाजा मेरे और मेरे पैरेंट्स के मन में बहुत से आशंकाएं थीं सुरक्षा को लेकर. लेकिन, जम्‍मू और कश्‍मीर में मेरा काम करने का अनुभव बेहद शानदार रहा. वहां के कार्यकाल में मैं एक ऐसे ऑफिसर्स में थी, जिसने एडिशनल एसपी रहते हुए एसपी रैंक के अधिकारी को गिरफ्तार किया था. डीआईजी रैंक के अधिकारी के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की.

महिला सशक्तिकरण की तरह सशक्‍त कदम

केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के दौरान, आईपीएस अधिकारी शिखा गोयल ने दिल्‍ली मेट्रो में तैनात सीआईएसएफ की महिला कर्मियों को फिलीपींस की पिकेती तिर्सिया काली मार्शल आर्ट का प्रशिक्षण दिलाया. इस मार्शल आर्ट की मदद से महिला कर्मियों को बिना किसी हथियार या दैनिक इस्‍तेमाल की वस्‍तुओं से दुश्‍मन को धूल चलाने की कला से सशक्‍त किया गया.

बाद में, इस आर्ट को दिल्‍ली विश्‍वविद्यालय के तमाम कॉलेज में पढ़ रही छात्राओं तक पहुंचा कर उन्‍हें महिला अपराध के खिलाफ सशक्‍त करने का काम किया गया. इतना ही नहीं, तेलंगाना सरकार की लोकप्रिय योजना ‘वीमेन ऑन व्हील्स’, ‘भरोसा’ और ‘शी’ को जन-जन तक पहुंचाने का श्रेय भी आईपीएस अधिकारी शिखा गोयल को जाता है. इन योजनाओं के जरिए वह महिलाओं को बेहद सशक्‍त बनाने की कोशिशों में लगी हुईं थीं.

हैदराबाद की महिला पुलिस बनी देश के लिए मिशाल

वरिष्‍ठ आईपीएस अधिकारी शिखा गोयल ने हैदराबाद की महिला पुलिस कर्मियों को देश में मिशाल के तौर पर खड़ा किया है. दरअसल, यहां महिलाओं पुलिस कर्मियों की भूमिका गिरफ्तार हुई महिला अपराधियों की सुरक्षा, लॉ एण्‍ड ऑर्डर बनाए रखने के लिए बंदोबस्‍त, महिला पीड़ितों से बात करने सहित नॉन कोर पुलिसिंग तक सीमित रहती थी.

हैदराबाद में एडिशनल कमिश्‍नर ऑफ पुलिस का चार्ज लेने के बाद शिखा गोयल को अब तक का सबसे बड़ा महिला पुलिस कर्मियों का बैच मिला था. ऐसे में, शिखा गोयल ने निश्‍चय किया कि इन महिला कर्मियों को उपयुक्‍त प्रशिक्षण देकर कोर पुलिसिंग में शामिल किया जाए. जिसके बाद, महिला पुलिस कर्मियों को इंवेस्‍टीगेशन, पेट्रोलिंग सहित दूसरी कोर पुलिसिंग जॉब की ट्रेनिंग दी गई.

वरिष्‍ठ आईपीएस अधिकारी शिखा अधिकारी की कड़ी मेहनत का नतीजा है कि आज हैदराबाद में महिला पुलिस कर्मी पूरे देश के पुलिस सिस्‍टम के लिए मिशाल के तौर पर खड़ी हुई हैं.

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