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पत्नी को मायके न जाने देना, उसके साथ मारपीट करना, क्रूरता की श्रेणी में आएगा: हाईकोर्ट…

बिलासपुर: बिलासपुर हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण मामले की सुनवाई करते हुए दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना के लिए प्रस्तुत की गई अपील को खारिज कर दी है. हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने कहा है कि किसी प्रकरण में पति की अपनी पत्नी के प्रति क्रूरता प्रमाणित होती है तो वह दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना का दावा नहीं कर सकता.

दरअसल कोरबा निवासी मोहम्मद इस्लाम का निकाह सिंगरौली मध्यप्रदेश निवासी नाज बानो से 28 जून 2011 को हुआ था. विवाह के 2-3 साल गुज़रने के बाद पहला बच्चा हुआ तो उसके बाद से पति ने 4 साल तक पत्नी को बहुत प्रताड़ित किया. उसको मायके नहीं जाने दिया जाता था. मायके वालों और बुजुर्गों की समझाइश के बाद भी उसका बर्ताव नहीं बदला.

पत्नी ने अपने घर फोन कर बताई बात

इसके बाद पत्नी ने अपने घर पर फोन करके बताया कि उसकी तबियत खराब है. उसके बाद जब मायके से लेने घर वाले पहुंचे तो उनको भी नहीं मिलने दिया गया. किसी तरह घर में घुसकर उन्होंने देखा कि बेटी की तबियत काफी खराब हो चुकी थी और वह शारीरिक रूप से कमज़ोर हो चुकी थी. मायके वालों ने जब लड़की को घर ले जाने की बात की तो लड़के ने विरोध कर मारपीट कर दी. उसके बाद पुलिस की सहायता और समझाइश से लड़की को उसके घर वाले मायके ले गए.

हाईकोर्ट ने सुनाया अहम फैसला

इसके बाद पत्नी के न लौटने पर पति ने दाम्पत्य जीवन की पुनर्स्थापना के लिए आवदेन कुटुम्ब न्यायालय कोरबा में लगाया जो खारिज हो गया. इसकी अपील हाईकोर्ट में की गई. जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस रजनी दुबे की डिवीजन बेंच ने सुनवाई की. हाईकोर्ट ने सभी पक्षों की बहस और तर्क के बाद माना कि पति द्वारा पत्नी को चार साल तक उसके मायके न जाने देना, मारपीट करना, कूरता की श्रेणी में आएगा. यह दाम्पत्य अधिकारों की पुनर्स्थापना के दावे के खिलाफ है. इसके साथ ही हाईकोर्ट ने पति की अपील को निरस्त कर फैमिली कोर्ट कोरबा के निर्णय को बरकरार रखा है.

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