Fiscal Deficit Target: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट स्पीच के दौरान फिस्कल डेफिसिट, सरकारी उधारी और कैपिटल एक्सपेंडिचर को लेकर आंकड़े पेश किये. उनकी तरफ से पेश किये गए नंबर्स के आधार पर रुपये और इंफ्रास्ट्रक्चर को सपोर्ट मिलने से आने वाले समय में ब्याज दर में कमी आ सकती है. सरकार ने फाइनेंशियल ईयर 2024-25 के लिए फिस्कल डेफिसिट को कम करके 5.1 परसेंट पर लाने का टारगेट रखा है. मौजूदा वित्त वर्ष के लिए इसे 5.9 प्रतिशत से घटाकर 5.8 परसेंट कर दिया गया है. वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण के दौरान कहा कि इंटरनेशनल रेटिंग एजेंसी को यह देने की जरूरत है कि भारत ने फिस्कल डेफिसिट को कम करने के लिए तय लक्ष्यों को पहले से बेहतर किया है.
आने वाले समय में निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा
देश का फिस्कल डेफिसिट 17 लाख 34 हजार 773 करोड़ रुपये है. इसे वित्तीय वर्ष 2024-25 में घटाकर 16 लाख 85 हजार 494 करोड़ रुपये लाने का टारगेट रखा गया है. बजट स्पीच के दौरान वित्त मंत्री ने कहा कि सरकारी उधारी में मौजूदा वित्तीय वर्ष 2023-24 के मुकाबले अगले वित्तीय वर्ष में कमी आएगी. इससे आने वाले समय में निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा. उन्होंने बताया कि टैक्स कलेक्शन बढ़ने और बैंकों व वित्तीय संस्थानों से सरकार को मिलने वाले फायदे से फिस्कल डेफिसिट कम करने में मदद मिलेगी. आपको बता दें ग्लोबल रेटिंग एजेंसी फिच, एसएंडपी और मूडीज ने भारत को स्टेबल सिनेरियो के साथ सबसे कम इनवेस्टेबल रेटिंग दी हुई है. निवेशक इस रेटिंग को देश की साख और कंपनियों की उधारी पर असर के पैमाने के रूप में देखते हैं.
क्या होगा असर?
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के चीफ इकनॉमिस्ट डीके जोशी कहना है कि भारत के फिस्कल अकाउंट पर दुनिया की नजरें टिकी हुई हैं. फिस्कल डेफिसिट में कमी आना पॉजिटिव संकेत है. फिस्कल डेफिसिट कम होने से महंगाई के नीचे आने में मदद मिलेगी. इससे रिजर्व बैंक का काम भी आसान होगा. सरकार की तरफ से आरबीआई को महंगाई दर 2 से 6 प्रतिशत के बीच रखने की जिम्मेदारी दी गई है. महंगाई नीचे आएगी तो रिजर्व बैंक रेपो रेट में कमी करेगा. अभी आरबीआई ने रेपो रेट को 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा हुआ है. दिसंबर में खुदरा महंगाई दर 5.69 परसेंट पर रही है. आरबीआई का कहना है कि उसका फोकस महंगाई दर को नीचे लाना है.
फिस्कल डेफिसिट क्या है?
फिस्कल डेफिसिट यानी राजकोषीय घाटा सरकार के कुल खर्च और उसके कुल राजस्व (उधार को छोड़कर) के बीच का अंतर होता है. इसे आसान शब्दों में समझें तो सरकार अपने जरूरी खर्चों को पूरा करने के लिए पर्याप्त रेवेन्यू नहीं जुटा पाती. खर्चें पूरे करने के लिए सरकार को उधार लेना पड़ता है. यह उधार ही यह फिस्कल डेफिसिट कहलाता है. उदाहरण के लिए सरकार का कुल खर्च एक करोड़ रुपये है. लेकिन उसका कुल राजस्व (उधार से अलग) 80 लाख रुपये है. ऐसे में राजकोषीय घाटा 20 लाख रुपये होगा.
फिस्कल डेफिसिट बढ़ने का असर
फिस्कल डेफिसिट बढ़ने का असर सरकार के साथ आम जनता पर भी पड़ता है. राजकोषीय घाटा बढ़ने से महंगाई दर बढ़ जाती है. महंगाई को नियंत्रित करने के लिए ब्याज दर में इजाफा किया जाता है. राजकोषीय घाटे बढ़ने के सरकार के ऊपर लोन का बोझ बढ़ जाता है. इसे कम करने के लिए सरकार खर्चों में कटौती करके इसमें कमी ला सकती है. दूसरा आर्थिक मोर्चे पर विकास होने से भी सरकार को राजस्व की प्राप्ति होती है और फिस्कल डेफिसिट कम होगा.
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