रायपुर और दुर्ग के बीच भिलाई-तीन चरोदा रेललाइन के समीप बसे देवबलौदा गांव का यह ऐतिहासिक मंदिर इसकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक है। मंदिर के अंदर करीब 3 से 4 फीट नीचे गर्भगृह में स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है मंदिर के बाहर बने कुंड को लेकर प्रचलित लोक कथाओं के बीच यह मंदिर बेहद खास है। बताया जाता है कि मंदिर को बनाने वाला कारीगर इसे अधूरा छोड़कर ही चला गया था इसलिए इसका गुंबद आज भी अधूरा है।
मान्यता है कि लगातार छः माह रात्रि में बनाया गया निर्माण के दौरान कारीगर रात में आ कर पहले मंदिर के कुंड में स्नान करता और मंदिर निर्माण कार्य में नग्न अवस्था में ही जुट जाता इस कार्य में उसकी पत्नी भी उसका सहयोग करती थीं एक दिन कारीगर की पत्नी की जगह भोजन लेकर उसकी बहन वहा पहुंची और कारीगर को नग्न अवस्था में देखा यह देख कारीगर खुद को छुपाने मंदिर के ऊपर से ही नीचे कुंड में छलांग लगाई ये सब देख कारीगर की बहन ने भी बाजू में स्थित तलब में कूद गई।
कहा जाता है कि मंदिर के इस कुंड के भीतर एक ऐसा गुप्त सुरंग जो आरंग के शिव मंदिर में निकलता है। इसी सुरंग से कारीगर देव बालोद के मंदिर से आरंग के एक शिव मंदिर के पास निकला और पत्थर में बदल गया
आज भी कुंड और तालाब दोनों मौजूद है तालाब के बीचों बीच कलाशनुमा आकृति है जिससे इसका नाम करसा तालाब पड़ गया क्योंकि जब वह अपने कारीगर भाई के लिए भोजन लेकर आई थी तो भोजन के साथ सिर पर पानी का कलश भी था।
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