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प्याज अब रूलाएगा नहीं, सामुदायिक बाड़ियों में बड़े पैमाने पर प्याज उत्पादन को प्रोत्साहन…

दुर्ग / गोंदली के साथ बासी वाले हमारे प्रदेश में प्याज का रकबा फिर भी जरूरत के मुताबिक कम है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की बाड़ी योजना में जिस तरह से निर्देश दिये गये हैं उसके अनुपालन में जिला प्रशासन द्वारा सामुदायिक बाड़ियों में अलग-अलग तरह की सब्जी फसल लगाई जा रही है। इस क्रम में ग्राम चीचा में प्याज की फसल लगाई है। इसका रकबा 0.4 हेक्टेयर का है।

इसे क्रांति महिला स्वसहायता समूह के सदस्य ला रहे हैं। इसके लिए डीएमएफ मद से सहयोग दिया गया है। समूह की अध्यक्ष गीता पटेल ने बताया कि हमें बताया गया कि बाड़ी में एक ही तरह की फसल लगाओगे तो ज्यादा लाभ मिलेगा क्योंकि थोक में आपके उत्पाद की खरीदी हो जाएगी। हार्टिकल्चर विभाग के अधिकारी आये और उन्होंने भूमि का परीक्षण कर बताया कि इसमें प्याज के लिए अच्छी संभावनाएं हैं और हमने इसे रोपा है।

गीता ने बताया कि उन्हें उद्यानिकी विभाग के अधिकारी इस संबंध में तकनीकी रूप से प्रशिक्षण इस संबंध में जानकारी देते हुए जिला पंचायत सीईओ अश्विनी देवांगन ने बताया कि कलेक्टर पुष्पेंद्र कुमार मीणा ने बीते दिनों बैठक ली थी और उन्होंने निर्देश दिये थे कि सभी बाड़ियों में अलग तरह के क्राप लेने और भूमि के परीक्षण के पश्चात उपयुक्त क्राप लेने से फसल भी बेहतर होने की संभावना बनेगी। इनका थोक में विक्रय आसान रहेगा।

साथ ही जैविक तरीके से उत्पादन होने से इनका विक्रय भी जैविक मार्ट के माध्यम से किया जा सकेगा और जैविक तरीके से उत्पादन होने की वजह से इनका दाम भी अच्छा मिल सकेगा। हमारे जिले में सत्रह सौ हेक्टेयर रकबा- उप संचालक उद्यानिकी श्रीमती पूजा साहू कश्यप ने बताया कि दुर्ग जिले में अभी प्याज का रकबा सत्रह सौ हेक्टेयर है।

सामुदायिक बाड़ियों के माध्यम से प्याज की खेती को प्रोत्साहित किया जाए तो इसके बढ़ने की काफी उम्मीद है। प्याज की खेती में लाभ की काफी संभावना है। एक एकड़ की बात करें तो इसमें लागत लगभग 33 हजार रुपए की आती है और खर्च निकालने के बाद पौने दो लाख रुपए के आय की संभावना बनती है।

अभी सबसे ज्यादा महाराष्ट्र से आता है प्याज- अभी देश भर की स्थिति देखें तो प्याज की अधिकतर आपूर्ति महाराष्ट्र से होती है। इसके बाद मध्यप्रदेश में भी प्याज की खेती का बड़ा रकबा है। छत्तीसगढ़ में भी 23 हजार हेक्टेयर रकबे में इसकी खेती हो रही है। फसल वैविध्य को अमल में लाये जाने से पूरे देश में ऐसे उत्पादन की एकरूपता बनती है।

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