दुर्ग / यह जिलावासियों के लिए गौरव की बात है कि हमारे जिले ने स्वच्छता सर्वेक्षण में ईस्ट जोन में दूसरी रैंक हासिल की है। नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित कार्यक्रम में जिला पंचायत अध्यक्ष श्रीमती शालिनी यादव, उपाध्यक्ष अशोक साहू एवं जिला पंचायत सीईओ अश्विनी देवांगन ने यह सम्मान ग्रहण किया।
आज जिला पंचायत सीईओ श्री देवांगन ने कलेक्टर पुष्पेंद्र कुमार मीणा से सम्मान समारोह के अपने अनुभव साझा किये। कलेक्टर ने उन्हें शुभकामनाएं देते हुए स्वच्छता के क्षेत्र में इसी तरह से बढ़िया कार्य करने कहा। दुर्ग जिले की रणनीति के पांच अहम बिन्दु जिसकी वजह से दुर्ग को सफलता मिल पाई। इस प्रकार है।
1. बर्तन बैंक- प्लास्टिक वेस्ट न केवल प्रदूषण फैलाते हैं अपितु गांव की सुंदरता को भी बिगाड़ देते हैं। दोना पत्तल का चलन लगभग समाप्तप्राय होने के बाद प्लास्टिक का चलन बढ़ा। आयोजनों के पश्चात ग्रामीण क्षेत्रों में इसे फेंक दिया जाता जिससे गांव बदसूरत हो जाते। जिला प्रशासन ने बर्तन बैंक का प्रयोग आरंभ किया। समूह की महिलाओं ने बर्तन क्रय किये और इन्हें समारोहों पर किराये से देना आरंभ किया। इनका मामूली शुल्क लिया जाता। इससे समूह की महिलाओं की आय भी बढ़ी और प्लास्टिक वेस्ट पूरी तरह से रूक गया। अभी तक पूरे जिले में 50 से अधिक गांवों में बर्तन बैंक आरंभ हो चुके हैं।
2. सुजलम अभियान से सोकपीट- ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर सुजलम अभियान के अंतर्गत सोकपीट बनाये गये। लगभग 3000 सोकपीट बनाये गये। इससे स्वच्छता कार्य को आगे बढ़ाने में काफी मदद मिली।
3. घुरूवा की परंपरा लौटी- मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल द्वारा नरवा, गरुवा, घुरूवा, बाड़ी योजना लाये जाने से लोग घुरूवा की महत्ता की ओर पुनः आकृष्ट हुए और कंपोस्ट खाद पीछे बाड़ी में बनाये जाने और इसका बाड़ी में ही उपयोग किये जाने का चलन पुनः आरंभ हुआ। घुरूवा की परंपरा लौटने से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छता लौटी। अभी पंचायत की टीम ने भी पाटन ब्लाक का निरीक्षण किया और उन्होंने पाया कि पाटन ब्लाक के गांव बड़े सुंदर हैं। अधिकारियों ने उन्हें बताया कि इसके लिए गोधन न्याय योजना का कारक प्रमुख रहा।
4. स्वच्छता दीदी का असाधारण प्रयास- इस सफलता के पीछे सबसे बड़ा हाथ सबसे निचले अमले का रहा। इन्होंने लोगों को लगातार स्वच्छता के लिए प्रेरित किया और इसके अच्छे नतीजे सामने आये। स्वच्छता के क्षेत्र में पूर्व में भी रिसामा, तर्रीघाट, पतोरा आदि को पुरस्कृत किया जा चुका है।
5. छत्तीसगढ़ का पहला एफएसटीपी- पतोरा में छत्तीसगढ़ का पहला एफएसटीपी आरंभ हुआ है। इससे स्लज ट्रीटमेंट की सुविधा ग्रामीण क्षेत्रों में उपलब्ध हुई है।
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