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कोरोना की दूसरी लहर के बीच लॉकडाउन में पुलिस की मनमानी पर उठते कई सवाल

लॉकडाउन में कई जगह पुलिस की भूमिका सराहनीय भी दिखी

जिस तरह से देश के कोने-कोने से तस्वीर आ रही हैं, उसे देखकर लगता है कि लॉकडाउन में पुलिस बेलगाम हो गई है। ऐसा इसलिए कि एक तो वो लोग भी जिम्मेदार हैं क्योंकि मनाही के बावजूद सड़क पर निकल रहे हैं लेकिन उससे ज्यादा जिम्मेदार वो पुलिस है जो वैसे लोगों पर डंडे बरसा रही है या मेढ़क की तरह सड़कों पर रेंगने के लिए कह रही है या फिर मुर्गा बना रही है।
ये हम क्यों भूल जा रहे हैं कि पुलिस की ड्यूटी या नौकरी उन्हीं लोगों के लिए है जिन्हें वो सता रही है। उन लोगों को नियम के तहत एक-दो बार मना करने के बाद छोड़ भी सकती है या चालान काट सकती है या जुर्माना कर सकती है लेकिन पुलिस मनमाने पर उतर आई है। पुलिस ये क्यों भूल जा रही है जिस लॉकडाउन में लोगों के साथ वो बदसलूकी कर रही है, वो भी उन्हीं लोगों के हित के लिए है तो पुलिस भी उनका ख्याल रखे। कान्सटेबल से लेकर एसपी और डीएम तक की बदसलूकी की तस्वीर आप देख चुके हैं।

बिहार के भागलपुर में सिटी एसपी ने ही कुछ लड़कों के साथ ‘तू तड़ाक’ की तो छपरा में दारोगा ने दिव्यांग को पीटा. क्या इसे हम सही ठहरा सकते हैं? जवाब होगा नहीं, और ये सही हो भी नहीं सकता है। जिस नियम कानून को पढ़कर नौकरी की शपथ ली गई हो उसकी रक्षा करनी चाहिए न कि अनदेखी। एक आईपीएस अधिकारी से हम ये उम्मीद नहीं कर सकते कि वो किसी के साथ बदसलूकी करे।

सरकार ने लॉकडाउन लगाया है तो उसके उल्लंघन करने वालों के लिए नियम भी बनाये हैं, मसलन जगह-जगह मास्क चेकिंग, वाहन चेकिंग, जांच अभियान लोगों को घरों से बाहर निकलने से रोकने के लिए चलाये गए और उसमें लाखों रुपये जुर्माने के तौर पर वसूले गए। झारखंड में लॉकडाउन से अनलॉक के बीच पुलिस ने नियम तोड़ने वालों से एक करोड़ से ज्यादा रकम वसूला है. सबसे ज्यादा पैसा राजधानी रांची से वसूला गया। जबकि जमशेदपुर दूसरे स्थान पर रहा। ऐसे में बेहतर तो यही है कि ये राशि सरकार के कामकाज में खर्च होगी और सरकार के खजाने को भरेगी तो मनमाना क्यों? लॉकडाउन में कई जगह पुलिस की भूमिका सराहनीय भी दिखी लेकिन कई जगह पुलिस अपनी करतूत से सवालों से घिर जा रही है।

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