महाराष्ट्र की सत्ताधारी पार्टी शिवसेना इस वक्त सबसे बड़े संकट का सामना कर रही है. शिवसेना के ज्यादातर विधायक बागी एकनाथ शिंदे के कैंप में जा चुके हैं. ज्यादातर मंत्रियों ने भी गुवाहाटी में शरण लेकर उद्धव ठाकरे से किनारा कर लिया है.
लेकिन बड़ा सवाल ये है कि इतना सबकुछ होते हुए भी शिंदे कैंप आगे क्यों नहीं बढ़ रहा है. वह न तो मुख्यमंत्री पद पर अपना दावा कर रहा है और न ही महाविकास अघाड़ी सरकार को गिराने के लिए खुलकर सामने आ रहा है.
बीजेपी भी चुप्पी साधकर पूरा तमाशा देख रही है. दरअसल, विधायकों के नंबर गेम में उद्धव ठाकरे भले ही पिछड़ गए हों, लेकिन एक चीज है
जिसके दम पर वह अब भी ताकतवर हैं. और वो है राष्ट्रीय कार्यकारिणी, संगठन और पदाधिकारियों पर उनकी पकड़.
दो-तिहाई से ज्यादा विधायक शिंदे के साथ
शिवसेना के इस वक्त कुल 55 विधायक हैं. उनमें से 39 विधायक कथित तौर पर बागी रुख अपना चुके हैं और खुलकर बगावती नेता एकनाथ शिंदे का सपोर्ट कर रहे हैं.
इस तरह से देखा जाए तो दो-तिहाई से ज्यादा विधायक शिंदे गुट के साथ हैं. ये चाहें तो अपना अलग गुट बना सकते हैं, दलबदल कानून की तलवार का खतरा भी नहीं रहेगा.
क्योंकि दलबदल कानून की मार से बचने के लिए शिंदे कैंप को 55 में से दो-तिहाई यानी कम से कम 37 विधायकों का समर्थन चाहिए, और वह 39 विधायकों के समर्थन का दावा कर रहे हैं.
8 मंत्रियों का समर्थन भी शिंदे के पास
इसके अलावा, उद्धव सरकार के अब तक 8 मंत्री भी शिंदे गुट का दामन थाम चुके हैं. उच्च शिक्षा मंत्री उदय सामंत भी रविवार की रात गुवाहाटी पहुंच गए. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से ज्यादा मंत्री अब एकनाथ शिंदे के कैंप में हैं.
खबरें बताती हैं कि उद्धव के पास महज 3 मंत्रियों का समर्थन ही बचा है. ये 3 मंत्री हैं- उद्धव के बेटे और पर्यावरण व प्रोटोकॉल मंत्री आदित्य ठाकरे, परिवहन मंत्री अनिल परब और उद्योग मंत्री सुभाष देसाई उद्धव.
परब और देसाई दोनों ही विधान परिषद के सदस्य हैं. ऐसे में सरकार पर उनकी कितनी पकड़ बची है, ये साफ है.
ये है शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की ताकत
शिवसेना के ज्यादातर विधायकों और मंत्रियों का समर्थन भले ही बागी एकनाथ शिंदे के पास हो, लेकिन ऐसा नहीं है कि उद्धव ठाकरे के हाथ बिल्कुल खाली हैं और सारी ताकत उनके हाथ से छिन गई हो.
वजह ये है कि शिवसेना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का समर्थन अब भी उद्धव के पास है. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शिवसेना के सभी सांसद, विधायक, जिला प्रमुख और वरिष्ठ नेता शामिल रहते हैं.
इसमें कुल 288 सदस्य हैं. हाल ही में शिवसेना कार्यकारिणी की अहम बैठक हुई थी. उद्धव ठाकरे की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में 38 बागी विधायकों के अलावा वरिष्ठ नेता रामदास कदम और श्रीकांत शिंदे मौजूद नहीं थे.
बैठक में मौजूद बाकी सभी ने उद्धव ठाकरे पर भरोसा जताया था और 6 प्रस्ताव पास करके उद्धव ठाकरे को आगामी निर्णय लेने के लिए अधिकृत किया था.
संगठन में भी उद्धव ज्यादा मजबूत
इसके अलावा, संगठन के मोर्चे पर भी एकनाथ शिंदे के ऊपर उद्धव ठाकरे भारी पड़ते दिखाई दे रहे हैं. भास्कर की एक रिपोर्ट बताती है कि शिवसेना संगठन में 12 नेता, 30 उपनेता, 5 सचिव, एक मुख्य प्रवक्ता और 10 प्रवक्ता हैं,
जिनमें से ज्यादातर उद्धव ठाकरे के साथ खड़े नजर आ रहे हैं. रिपोर्ट का दावा है कि शिवसेना संगठन में अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के बाद 12 पदों में से एकनाथ शिंदे को छोड़कर बाकी 11 नेताओं में से किसी ने भी बागी तेवर नहीं दिखाए हैं.
सांसद, उपनेता, सचिवों में से भी ज्यादातर उद्धव के साथ
भास्कर के मुताबिक, शिवसेना के 30 उपनेताओं में से मंत्री गुलाबराय पाटिल, विधायक तानाजी सावंत और यशवंत जाधव को छोड़कर बाकी सभी उद्धव के नेतृत्व में काम करने को तैयार हैं. पांचों सचिव भी उद्धव के साथ हैं.
प्रवक्ताओं को देखें तो शिवसेना के मुख्य प्रवक्ता संजय राउत खुलकर बागियों को चुनौती दे रहे हैं. 10 अन्य प्रवक्ताओं में से प्रताप सरनाइक के अलावा बाकी सभी का समर्थन उद्धव के साथ है.
सांसदों के आंकड़े पर नजर डालें तो शिवसेना के संसद में 18 सदस्य हैं, जिनमें से बागी एकनाथ शिंदे के बेटे श्रीकांत शिंदे, भावना गवली के अलावा कोई भी उद्धव ठाकरे के विरोध में नहीं उतरा है.
यूथ, महिला विंग समेत कई यूनियन सपोर्ट में
इन सबके अलावा शिवसेना की युवा सेना, महिला मोर्चा समेत कई संगठन भी मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के समर्थन में नजर आ रहे हैं. युवा सेना की कमान उद्धव के बेटे आदित्य ठाकरे के पास है.
18 पदाधिकारी वाली महिला अघाड़ी की कार्यकर्ता भी उद्धव के सुर में सुर मिलाकर बागियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने में जुटी हुई हैं. भास्कर का दावा है कि शिवसेना की मजदूर यूनियन भारतीय कामगार सेना के
8 अहम पदाधिकारी उद्धव खेमे में दिख रहे हैं. इसके अलावा मराठी भाषियों और भूमिपुत्रों के लिए काम करने वाली यूनियन स्थानीय लोकाधिकार समिति महासंघ की कमान दो सांसदों के हाथ में है, जो उद्धव ठाकरे के विरोध में नहीं दिख रहे.
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