
नई दिल्ली । पिछले 8 सालों में दो लोकसभा चुनाव में शर्मनाक हार, कई राज्यों के विधानसभा चुनाव में हार और कई अहम जो कांग्रेस का गढ़ थे, वहां से पार्टी की विदाई के बाद देश की सबसे पुरानी पार्टी के सामने अस्तित्व का खतरा मंडरा रहा है।
इस अस्तित्व के खतरे से कैसे निपटा जाए इसको लेकर कांग्रेस पार्टी ने राजस्थान के उदयपुर में तीन दिन तक चिंतन शिविर का आयोजन किया। इस शिविर में सोनिया गांधी, राहुल गांधी,
प्रियंका गांधी समेत पार्टी के तमाम दिग्गज नेताओं ने हिस्सा लिया। बैठक के दौरान कई अहम मुद्दों पर चर्चा हुई और इस बात पर मंथन किया गया कि कैसे पार्टी को फिर से पुनर्जिवित किया जा सके।
जनता के मूड को भांपने की कोशिश
कांग्रेस पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती भारतीय जनता पार्टी के हिंदुत्व के एजेंडे का सामना करने की है। चिंतन शिविर में इस मुद्दे पर काफी चर्चा हुई और अब ऐसा लगता है
कि पार्टी राहुल गांधी के लिए इस मुद्दे पर जमीन तैयार करने का काम करेगी, पार्टी दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यक के बीच अपनी पैठ बढ़ाने की कवायद तेज करेगी। पार्टी ने इस बात को स्वीकार किया है कि उसका संवाद लोगों से बेहतर नहीं है और भाजपा की तुलना में काफी कमजोर है।
चुनाव रणनीति को लेकर भी शिविर में चिंता जाहिर की गई, लिहाजा फैसला लिया गया कि निरंतर अब जनता के बीच सर्वे किया जाएगा और उनके मूड को समझने की कोशिश की जाएगी। यही नहीं इसके साथ ही पार्टी दूसरे दलों के साथ गठबंधन के लिए भी अपने दरवाजे खोले रखना चाहती है।
हिंदू पर्व मनाने से हिचकना नहीं चाहिए
तीन दिन के चिंतन शिविर में कई नेताओं ने जिसमे मुख्य रूप से छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने तर्क दिया कि पार्टी को हिंदू पर्व मनाने से हिचकना नहीं चाहिए,
धार्मिक कार्यक्रमों से परहेज नहीं करना चाहिए, धार्मिक गुटों के साथ करीबी बढ़ानी चाहिए। लेकिन दक्षिण भारत से आए कांग्रेस के नेताओं ने इसका विरोध किया। लेकिन उत्तर भारत के नेताओं का कहना है
कि दक्षिण के नेता उत्तर भारत की राजनीति को नहीं समझते हैं। लंबी चर्चा के बाद कांग्रेस के पैनल ने सुझाव दिया कि पार्टी को सभी सांस्कृति संगठनों, एनजीओ, ट्रेड यूनियन, विचारकों,
समाज सेवियों के साथ करीबी बनानी चाहिए, जबकि धर्म को एक दायरे में रखना चाहिए। कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने जो प्रस्ताव स्वीकार किया उसमे धर्म को नहीं शामिल किया गया है।
संगठन में बदलाव
पार्टी संगठन में बड़े बदलाव को तैयार नजर आ रही है। जो नेता 50 साल से कम उम्र के हैं उन्हें आगे बढ़ाने की बात कही गई। इन नेताओं को नेतृत्व की भूमिका में लाने की बात कही गई,
इन्हें संगठन में नेतृत्व सौंपने को कहा गया। हालांकि पार्टी इस बात के लिए तैयार नहीं है कि वह जी-23 की मांग को स्वीवाकर करे,जिसमे पार्टी के असंतुष्ट नेताओं ने मांग की थी कि संसदीय बोर्ड में बदलाव होना चाहिए।
पार्टी ने इस बात के भी संकेत दिए हैं कि बुजुर्ग नेताओं को कांग्रेस वर्किंग कमेटी से बाहर किया जा सकता है ताकि युवा नेताओं की एंट्री हो सके। सोनिया गांधी ने एक सुझाव मंडल का भी सुझाव दिया,
जोकि भाजपा के मार्गदर्शक मंडल की ही तर्ज पर है। जी-23 के नेताओं को स्पष्ट तौर पर संकेत दिया गया है कि यह गुट संयुक्त रूप से फैसले लेने वाला ग्रुप नहीं है। बता दें कि जी-23 मांग कर रहा था कि संयुक्त रूप से मिलकर सुधार के फैसले लेने की जरूरत है।
दलित-अल्पसंख्यकों तक पहुंचना
पार्टी ने चिंतन शिविर के दौरान तीसरा अहम मुद्दा दलितों और अल्पसंख्यकों के बीच अपनी पैठ को बढ़ाने का था। पार्टी एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यकों तक अपनी पैठ को बढ़ाना चाहती है।
हालांकि इस बात पर फैसला नहीं हो सका है कि पार्टी के संगठन में उन्हें कितना आरक्षण मिलेगा। मौजूदा समय में पार्टी का संविधान कहता है कि इन समुदायों का 20 फीसदी से कम आरक्षण नहीं हो सकता है।
लेकिन इसे 50 फीसदी करने की मांग रखी गई, लेकिन इसपर सहमति नहीं बन सकी। माना जा रहा है कि दलित, ओबीसी, आदिवासी के जरिए पार्टी भाजपा के हिंदुत्व की राजनीति पर पलटवार करनाचाहती है। पार्टी ने सोशल जस्टिस एडवायजरी काउंसिल के गठन का भी फैसला लिया है।
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