Online की वजह से भारतीय बच्चों को दुनिया में सबसे ज्यादा नुकसान, रिपोर्ट की बड़ी बातें जानिए…
एक अमेरिकी सॉफ्टवेयर सिक्योरिटी कंपनी ने दुनिया के 10 देशों में ऑनलाइन से जुड़े जोखिमों को लेकर एक बड़ा सर्वे किया है, जिसमें भारत की तस्वीर सबसे खतरनाक बताई गई है।
यहां बच्चों को दुनिया में सबसे ज्यादा ऑनलाइन से जुड़े जोखिमों से संबंधित नुकसान का डर है। सर्वे में बताया गया है कि किस तरह से बच्चे अपनी ऑनलाइन ऐक्टिविटी को छिपाने में माहिर हो गए हैं
और कैसे माता-पिता भी उनपर नजर रखने के लिए तरह-तरह के तरीके इस्तेमाल करते हैं। सर्वे में लैंगिक भेदभाव का भी पता चला है। गौरतलब है कि कोविड महामारी की वजह से बच्चों को ज्यादा ऑनलाइन एक्सपोजर मिला, लेकिन इससे जुड़े नुकसान भी अब सामने आ रहे हैं।
12,000 बच्चे और 15,500 माता-पिता सर्वे में शामिल कोविड महामारी की वजह से बच्चों ने पिछले सवा दो सालों से इंटरनेट पर बहुत ज्यादा वक्त बिताया है। छोटे-छोटे बच्चों की ऑनलाइन क्लास लोकप्रिय हुई है।
लेकिन, इसकी वजह से बहुत कम उम्र में बच्चों को इंटरनेट का एक्सपोजर भी बहुत ज्यादा हुआ है, जिसके चलते बच्चे साइबरबुलिंग और बाकी खतरों की चपेट में आए हैं।
यह रिपोर्ट अमेरिकी सॉफ्टवेयर सिक्योरिटी कंपनी मैकाफे ने लाइफ बिहाइंड द स्क्रीन्स ऑफ पैरेंट्स, ट्वींस एंट टींस के नाम से तैयार की है। कंपनी ने यह रिपोर्ट अमेरिका, भारत, यूके समेत 10 देशों के 15,500 माता-पिता और उनके 12,000 बच्चों के सर्वे के आधार पर तैयार की है।
ऑनलाइन जोखिमों पर सर्वे दुनिया भर में 15 और 16 साल के बीच के 90 फीसदी किशोरों ने कहा है कि उन्होंने स्मार्ट फोन या मोबाइल डिवाइस का इस्तेमाल किया है। 12 मई को दी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि 10 से 14 वर्ष के बच्चों की तुलना में यह 14 फीसदी ज्यादा है,
जिनमें से 76 फीसदी ने कहा कि उन्होंने स्मार्ट फोन या मोबाइल फोन इस्तेमाल किया। वैसे इस सर्वे का मकसद ये देखना था कि माता-पिता खुद और अपने बच्चों को इंटरनेट से जुड़े जोखिमों से कैसे सुरक्षित रखते हैं।
साइबरबुलिंग का वैश्विक ट्रेंड नजर आया सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि 17 या 18 साल की उम्र में साइबरबुलिंग की घटनाएं 18 फीसदी बढ़ी हुई पाई गईं। वहीं ऑनलाइन अकाउंट चुराने की 16 फीसदी और दूसरों के निजी डेटा के अनधिकृत इस्तेमाल के मामलों में 14 फीसदी इजाफा देखा गया है।
हालांकि, आंकड़े ये भी बता रहे हैं कि 73 फीसदी केस में बच्चों ने ऑनलाइन सेफ्टी के लिए दूसरे संसाधनों से ज्यादा अपने माता-पिता से मदद चाही। लेकिन, वास्तविकता ये है कि माता-पिता अपने बच्चों को साइबरबुलिंग से बचाने में पिछड़ते नजर आए।
ऑनलाइन ऐक्टिविटी छिपाने की प्रवृत्ति रिसर्च में यह बात भी सामने आई है कि आधे से ज्यादा यानी 59 फीसदी बच्चों ने अपनी ऑनलाइन गतिविधियों को छिपाया। इसके लिए ब्राउजर हिस्ट्री को हटाने के साथ-साथ, वे ऑनलाइन जो कुछ भी करते हैं,
सबको मिटा देते हैं। रिसर्च में यह भी पाया गया है कि जब बच्चों को ऑनलाइन जोखिमों से सुरक्षित रखने की बात आई तो माता-पिता में लैंगिक भेदभाव किया। आंकड़े बताते हैं कि ऑनलाइन जोखिमों में लड़कियों को ज्यादा प्रोटेक्टेड किया गया है।
हालांकि, समस्याओं की बारी आई तो लड़कों को ऑनलाइन ज्यादा भुगतना पड़ा। लड़के-लड़कियों को लेकर एक और बड़ा दावा जिन देशों में सर्वे हुआ है वहां देखा गया कि 10 से 14 साल की लड़कियों को उसी उम्र के लड़कों की तुलना में उनके पर्सनल कम्यूटर या लैपटॉप पर माता-पिता ने ज्यादा निगरानी रखी,
जबकि लड़कों का अपने माता-पिता से अपनी ऑनलाइन ऐक्टिविटी छिपाने की ज्यादा आशंका थी। 23 फीसदी माता-पिता ने कहा कि वे 10 से 14 साल की अपनी बेटियों की ब्राउजिंग और ईमेल हिस्ट्री चेक करेंगे। वहीं इसी उम्र के लड़कों के माता-पिता में ऐसा करने वालों की संख्या सिर्फ 16 फीसदी रही।
इसी तरह 22 फीसदी माता-पिता ऐसे मिले, जिन्होंने कुछ साइट्स को लड़कियों के लिए ऐक्सेस करना रोक दिया। जबकि, लड़कों के मामले में ऐसे सिर्फ 16 फीसदी माता-पिता मिले हैं।
भारतीय बच्चों को दुनिया में सबसे ज्यादा नुकसान शोधकर्ताओं ने पाया है कि अमेरिका में साइबरबुलिंग की तादाद सबसे ज्यादा यानी 28 फीसदी है। वहां ऑनलाइन एक्सपोजर का जोखिम भी बहुत ज्यादा है। लेकिन, अगर पूरी दुनिया की बात की जाए तो भारतीय बच्चों में ऑनलाइन नुकसान का जोखिम सबसे ज्यादा है।
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