पीएम मोदी के फ्रांस दौरे से ठीक पहले बड़ा झटका, पनडुब्बी प्रोजेक्ट से क्यों फ्रांसीसी कंपनी हटी पीछे
पेरिस : प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के फ्रांस दौरे से पहले फ्रांस की प्रमुख हथियार कंपनी नेवल ग्रुप ने भारत को बड़ा झटका दिया है और घोषणा की है, कि वो भारत में P-75 इंडिया परियोजना में भाग लेने में असमर्थ है, जिसके तहत भारत में नौसेना के लिए छह पारंपरिक पनडुब्बियों का निर्माण किया जाना है।
43 हजार करोड़ का है प्रोजेक्ट
भारतीय नौसेना के लिए 6 पारंपरिक पनडुब्बियों के निर्माण के लिए ये प्रोजेक्ट 43 हजार करोड़ रुपये का है और इस प्रोजेक्ट के लिए पांच अंतर्राष्ट्रीय पनडुब्बी निर्माण करने वाली कंपनियों को शॉर्टलिस्ट किया गया था,
जिसमें से एक फ्रांसीसी कंपनी ‘नेवल ग्रुप’ भी शामिल थी। लेकिन, अब फ्रांसीसी कंपनी नेवल ग्रुप ने कहा है कि, वह प्रस्ताव के लिए अनुरोध (आरएफपी) की शर्तों को पूरा नहीं कर सकता है और
इसलिए वो बोली लगाने की प्रक्रिया को आगे जारी रखने में सक्षम नहीं है। इंडियन नेवी के लिए यह प्रोजेक्ट भारत सरकार की नई रणनीतिक साझेदारी मॉडल के तहत है,
जिसके तहत भारत सरकार की कोशिश है, कि विदेशी कंपनियां भारत में आए और भारत की कंपनी के साथ भारत में पनडुब्बियों का निर्माण करेगा और भारत की कंपनी को टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करे।
लिहाजा भारत सरकार पनडुब्बियों के निर्माण और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर करने के लिए एक भारतीय कंपनी के साथ काम करने के लिए ‘इंटरनेशनल ऑरिजिनल इक्विपमेंट मैन्यूफैक्चरर’ (ओईएम) के तहत भागीदारी की तलाश कर रही है।
क्या है पी-75 प्रोजेक्ट
पी-75 प्रोजेक्ट भारत में पनडुब्बियों के निर्माण की दूसरी परियोजना है। इससे पहले भारतीय नौसेना समूह ने भारत में मझगांव डॉकयार्ड शिपबिल्डिंग लिमिटेड (MDL) के साथ साझेदारी में P-75 परियोजना के तहत
छह कलवरी क्लास (स्कॉर्पीन क्लास) पारंपरिक पनडुब्बियों का निर्माण अभी भी पूरा किया है। पी-75 परियोजना पर 2005 में हस्ताक्षर किए गए थे (नौसेना समूह को तब DCNS कहा जाता था) और छह में से,
चार पनडुब्बियों को पहले ही नौसेना में शामिल किया जा चुका है। इस क्लास में छठी पनडुब्बी को पिछले महीने लॉन्च किया गया था और अगले साल के अंत तक इसके चालू होने की उम्मीद है।
फ्रांसीसी कंपनी प्रोजेक्ट से क्यों पीछे हटी?
दरअसल, भारत की जरूरतें अलग हैं और 30 अप्रैल को फ्रांसीसी कंपनी नेवल ग्रुप इंडिया के कंट्री हेड और मैनेजिंग डायरेक्टर लॉरेंट वैद्यु ने एक बयान में कहा था, कि ‘वर्तमान आरएफपी के लिए यह जरूरी है,
कि फ्यूल सेल एआईपी समुद्र में काम करने के लिए साबित हो, जो हमारे लिए अभी तक ऐसा नहीं है, क्योंकि फ्रांसीसी नौसेना इसका उपयोग नहीं करती है’। आपको बता दे कि,
फ्यूल सेल एआईपी एक प्रणोदन प्रणाली है और एआईपी पारंपरिक पनडुब्बियों के लिए एयर इंडिपेंडेंट प्रपोल्शन टेक्नोलॉजी है, और इसके जरिए पनडुब्बियों को काफी ज्यादा वक्त तक समुद्र के अंदर रहने की शत्ति मिलती है
और पनडुब्बी को जलमग्न रहने की क्षमता प्रदान करती है। इसके साथ ही इस टेक्नोलॉजी की एक बड़ी खासियत ये है, कि ये डीजल-इलेक्ट्रिक प्रपोल्शन प्रणाली की तुलना में कम शोर करती है।
जिससे दुश्मनों के रडार के लिए इसे पकड़ना काफी मुश्किल होता है। लॉरेंट वैद्यु ने कहा था कि, नेवल ग्रुप ने कहा कि, ‘नेवल ग्रुप हमेशा भारतीय नौसेना की P75 (I) परियोजना के लिए सर्वश्रेष्ठ श्रेणी और
अनुकूलित टेक्नोलॉजी की पेशकश करने के लिए हमेशा तैयार रहा है, और यह पूरी तरह से आत्मनिर्भर भारत सिद्धांत के मुताबिक है’। उन्होंने कहा था कि,
नेवल ग्रुप ‘हमारी मौजूदा प्रतिबद्धताओं को मजबूत करेगा और हम भारत के साथ घनिष्ठ सहयोग की आशा रखते हैं।”
भारत की बढ़ी चिंताएं
प्रधानमंत्री मोदी कल फ्रांस की यात्रा पर रहेंगे और उनकी मुलाकात फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ होने वाली है, जो दोबारा फ्रांस के राष्ट्रपति पिछले महीने ही चुने गये हैं। पीएम मोदी ने फ्रांस दौरे को लेकर कहा था, कि,
राष्ट्रपति मैक्रों के साथ उनकी बैठक “दोनों देशों के बीच घनिष्ठ मित्रता की पुष्टि करेगी” और “हमें भारत-फ्रांस रणनीतिक साझेदारी के अगले चरण की टोन सेट करने का अवसर भी देगी।”
लेकिन, नेवल ग्रुप के इस प्रक्रिया से हटने से P-75 प्रोजेक्ट को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं। हालांकि, यह सार्वजनिक रूप से दौड़ से बाहर होने वाले पांच शॉर्टलिस्टेड ओईएम में से पहली कंपनी है,
लेकिन, सूत्रों ने कहा किस, रूस और स्पेन के ओईएम भी प्रभावी रूप से इस बोली में भाग नहीं ले रहे हैं, हालांकि उन्होंने अब तक ऐसी कोई घोषणा नहीं की है।
पांच कंपनियों को किया गया था शॉर्टलिस्ट
भारत सरकार ने पिछले साल जुलाई में इस प्रोजेक्ट के लिए आरएफपी जारी किया था, जिसमें पांच शॉर्टलिस्ट किए गए ओईएम को पनडुब्बियों के निर्माण के लिए बोली लगाने के लिए शॉर्टलिस्ट किए गए
भारतीय रणनीतिक भागीदारों (एसपी) में से एक के साथ साझेदारी करनी थी। जिन भारतीय कंपनियों को शॉर्टलिस्ट किया गया था, उनके नाम मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (एमडीएल) और लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) हैं,
जिन्हें पांच विदेशी ओईएम, नेवल ग्रुप (फ्रांस), थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स (जर्मनी), जेएससी आरओई (रूस), शिपबिल्डिंग एंड मरीन इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड (दक्षिण कोरिया) और
नवंतिया (स्पेन) में से किसी एक साथ बोली लगाकर करार करनी थी, लेकिन एन वक्त पर फ्रांसीसी कंपनी का प्रोजेक्ट से पीछा हटना एक बड़ा झटका है और आत्मनिर्भर अभियान को बड़ा झटका लगा है।
सूत्रों ने क्या बताई असली वजह
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, सूत्रों ने कहा कि फ्रांसीसी कंपनी नेवल ग्रुप ने इस बोली से पीछे हटने के पीछे ‘सी-प्रूवेन’ एआईपी ईंधन सेल्स की क्षमता को लेकर अपनी असमर्थता जाहिर की है,
लेकिन ओईएम के कुछ सूत्रों ने कहा कि, वो भारतीय भागीदारों के साथ अपनी विशेषज्ञता और आला टेक्नोलॉजी साझा करने के बारे में सहज नहीं हैं।
भारत को थी बड़ी उम्मीदें
इस प्रोजेक्ट के लिए आरएफपी जारी करते हुए भारत सरकार ने कहा था कि, ‘इसमें छह आधुनिक पारंपरिक पनडुब्बियों (संबद्ध तट समर्थन, इंजीनियरिंग सहायता पैकेज,
प्रशिक्षण और स्पेयर पैकेज सहित) के स्वदेशी निर्माण की परिकल्पना की गई है, जिसमें समकालीन उपकरण, हथियार और ईंधन सहित सेंसर शामिल हैं। वहीं, सेल आधारित एआईपी (एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन प्लांट),
उन्नत टॉरपीडो, आधुनिक मिसाइल और अत्याधुनिक काउंटरमेजर सिस्टम को भी इसमें शामिल किया गया है और इस परियोजना के हिस्से के रूप में लेटेस्ट पनडुब्बी डिजाइन और
टेक्नोलॉजी को लाने के अलावा, भारत में पनडुब्बियों की स्वदेशी डिजाइन और निर्माण क्षमता को एक बड़ा बढ़ावा देगा।”
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