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90 दिन में Crude 70% बढ़कर 110 डॉलर के पार, अब पड़ेगी 7 तरफ से मार, जानें आप पर क्‍या असर?

नई दिल्‍ली. कच्‍चे तले की कीमतों में बुधवार को अचानक 7 फीसदी से ज्‍यादा उछाल आ गया. रूस-यूक्रेन के बीच जारी युद्ध से दुनियाभर में कच्‍चे तले की सप्‍लाई पर असर पड़ा है, जिसका खामियाजा महंगे तेल के रूप में उठाना पड़ रहा.

एक्‍सपर्ट का कहना है कि डब्‍ल्‍यूटीआई क्रूड (WTI) जो 30 नवंबर को 65 डॉलर प्रति बैरल के भाव था, बढ़कर 108 डॉलर के आसपास पहुंच गया है. ब्रेंट क्रूड (BRENT) भी 70 डॉलर प्रति बैरल से 110 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया है. इस तरह महज तीन महीने में कीमतें 70 फीसदी तक बढ़ीं हैं. आम आदमी से लेकर कंपनियां और सरकार तक भड़कते क्रूड की तपन महसूस करते हैं.

हम आपको ऐसे ही 7 प्रमुख क्षेत्रों की जानकारी दे रहे, जहां महंगा क्रूड सबसे ज्‍यादा असर डालेगा.

पेट्रोल-डीजल के दाम 

भारत अपनी जरूरत का करीब 85 फीसदी तेल आयात करता है. जाहिर है कि क्रूड ऑयल के दाम बढ़ने पर खुदरा बाजार में पेट्रोल-डीजल भी महंगा हो जाएगा. चुनाव के दबाव में सरकार और सरकार के दबाव में कंपनियां भले ही तीन महीने से कोई बढ़ोतरी नहीं कर रहीं, लेकिन इस बात की पूरी उम्‍मीद है कि 10 मार्च के बाद पेट्रोल-डीजल के दाम अचानक बढ़ने वाले हैं. सरकार और कंपनियां दोनों ही महंगे क्रूड का ज्‍यादा बोझ सहने की स्थिति में नहीं हैं.

आम आदमी पर महंगाई की मार

डीजल महंगा होने का सीधा असर माल ढुलाई की लागत पर दिखता है और खाने-पीने के सामान महंगे हो जाते हैं. किसान भी खेत की सिंचाई में महंगा डीजल इस्‍तेमाल करते हैं, तो अनाजों की बाजार कीमत भी बढ़ती जाती है. कुल मिलाकर सब्‍जी, फल, अनाज सहित सभी जरूरी चीजों के दाम बढ़ सकते हैं.

खाने का तेल भी महंगा 

वैसे तो देखा जाए तो खाने के तेल और क्रूड का सीधा संबंध नहीं होता, लेकिन माल ढुलाई की लागत बढ़ने पर खाने का तेल भी महंगा होना लाजिमी है. दूसरी बात ये है कि भारत खाने के तेल की कुल जरूरत का 60 फीसदी आयात करता है और रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से इसकी सप्‍लाई बाधित है और पाम, सूरजमुखी, सोयाबीन सहित सभी खाद्य तेल वैसे ही महंगे हो रहे हैं.

कमजोर हो रहा रुपया

क्रूड के दाम बढ़ने से भारतीय मुद्रा पर बहुत असर पड़ता है. चूंकि, हम क्रूड ऑयल खरीदने के लिए डॉलर में भुगतान करते हैं, लिहाजा हमें जितना ज्‍यादा डॉलर खर्च करना पड़ेगा उतना ही रुपये का इस्‍तेमाल करना होगा. इससे डॉलर की मांग बढ़ेगी और उसके भाव ऊपर उठते जाएंगे. इसका सीधा बोझ सरकार के खजाने पर पड़ेगा, क्‍योंकि उसे डॉलर के मुकाबले ज्‍यादा रुपये का इस्‍तेमाल करना होगा.

भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था 

क्रूड में आ रही महंगाई सरकार के आयात बिल में बड़ा इजाफा करेगी. अनुमान है कि 2021-22 में सरकार को क्रूड आयात पर 100 अरब डॉलर खर्च करने होंगे, जिससे चालू खाते का घाटा बढ़ेगा और कुल इकोनॉमी पर असर पड़ेगा. सरकार पर आयात बिल का बोझ बढ़ने से उसके राजस्‍व घाटे में भी इजाफा हो सकता है, जो फिलहाल जीडीपी का 6.9 फीसदी रहने का अनुमान है.

महंगा हो जाएगा सफर 

महंगे क्रूड का असर यात्रा पर भी पड़ेगा, चाहे आप खुद के वाहन से जाएं अथवा सार्वजनिक वाहन का इस्‍तेमाल करें. लगातार महंगा डीजल इस्‍तेमाल करने से बस के किराये में वृद्धि हो सकती है. आपकी कार या बाइक भी समान दूरी के लिए ज्‍यादा रुपये का ईंधन खपत करेगी. इसके अलावा विमान ईंधन के दाम बढ़े तो हवाई सफर भी महंगा हो जाएगा.

विकास दर बरकरार रखना मुश्किल

अर्थव्‍यवस्‍था पर चारों तरफ से पड़ने वाली मार का असर विकास दर पर भी दिखेगा. महंगे क्रूड से सरकार पर राजस्‍व का बोझ आएगा और महंगाई से त्रस्‍त जनता अपना खर्च घटाने को मजबूर हो जाएगी. ऐसी स्थिति में जीडीपी विकास दर की मौजूदा 5.4 फीसदी की रफ्तार बने रहना मुश्किल होगा. यानी हम चीन की विकास दर से पीछे हो जाएंगे और 5 ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी बनने में भी देर होगी.

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