हमें अधूरा न्याय मिला है – आई पी मिश्रा…
अभिषेक मिश्रा हत्याकांड का फैसला, 5 साल बाद ऑनलाइन, परिजन नाखुश
संक्षिप्त में घटनाक्रम यह है कि 9 नवंबर 2015 को भिलाई के शिक्षाविद आईपी मिश्रा के इकलौते बेटे अभिषेक मिश्रा का अपहरण करके हत्या कर दिया गया।
उपरांत स्मृति नगर के एक मकान के गार्डन में गड्ढा खोदकर दफना दिया जाता है और उसके ऊपर गोभी की सब्जी उगा दी जाती है। इस हत्याकांड का खुलासा अपहरण के 44 दिन बाद बड़ी मशक्कत के बाद हुआ।
प्रथम स्तर पर फिरौती का मामला मानते हुए पुलिस आसपास के राज्यों का दौरा किया और मोबाइल कॉल खंगाले गए फिर भी कोई पुख्ता प्रमाण नही मिल रहा था और ना ही कोई फिरौती के लिए कॉल आया। धीरे-धीरे एक हफ्ता, दो हफ्ता गुजरा। परिजनोों को अनहोनी की आशंका होने लगी। पुलिस फिरौती, रंजिश और अलग नजरिए से पतासाजी करने के बाद नाकामयाब होने पर अभिषेक के निजी जीवन के आधार पर जांच शुरू की और फिर से कुछ और मोबाइल कॉल डिटेल खंगालने पर कुछ रास्ता तो मिला पर पुख्ता सबूत नहीं।
संदेह के आधार पर पुलिस ने विकास जैन और अजीत सिंह नाम के दो शख्स को गिरफ्तार किया और गहन पूछताछ के बाद उन लोगों ने अभिषेक की हत्या करने का अपराध कबूल किया और इस पूरे घटनाक्रम की रूपरेखा तैयार करने वाली किम्सी जैन जो कि विकास जैन की पत्नी है और शंकराचार्य इंजीनियरिंग कॉलेज में नौकरी करती थी, उसे भी गिरफ्तार कर लिया गया।
फिर उनकी निशानदेही पर स्मृति नगर में एक मकान के गार्डन से अभिषेक की बॉडी बरामद की गई। अभिषेक के कुछ सामान के आधार पर उसकी पहचान की गई और इसके बाद किम्सी जैन, उसके पति विकास जैन और अजीत को गिरफ्तार कर मामले की जांच की गई और जांच पूरी कर इसे दुर्ग न्यायालय में प्रस्तुत किया गया. करीब 5 साल तक यह मामला दुर्ग जिला न्यायालय में चला और पूरी सुनवाई के बाद किम्सी जैन को बरी कर विकास जैन (किम्सी का पति) और चाचा अजीत सिंह को आजीवन कारावास की सजा दी गई। परिजन इस बात से दुखी हैं कि मास्टरमाइंड किम्सी जैन को बरी करना उनके साथ अधूरा न्याय है।
अब सवाल यह बनता है कि इतनी हाई प्रोफाइल मामले में इतना देर होना शासन और न्यायालय की कार्यप्रणाली पर क्या प्रश्न चिन्ह नही लगता। फिर बेचारे नीचे तबके का तो भगवान ही जाने।
स्व. अभिषेक मिश्रा के बहनोई निशान्त त्रिपाठी ने कहा कि हमें संपूर्ण न्याय नहीं मिला है क्योंकि मामला उजागर होने के बाद पुलिस ने केवल दो अभियुक्तो से पूरी बात की जबकि मास्टरमाइंड इस केस की प्रमुख साजिशकर्ता किम्सी जैन से मेमोरेंडम नहीं लिया गया। ऐसी परिस्थिति में किम्सी जैन को बरी करने का सवाल ही नहीं पैदा होता।साथ ही इतनी बड़ी वारदात में और भी लोगों के शामिल होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकती, इस पर पुलिस ने ध्यान नहीं दिया है और तीन अभियुक्त मिल जाने पर उतने में ही उन्होंने अपनी जांच करके केस का पटाक्षेप कर दिया। उच्च न्यायालय में भी परिजन अपील करेंगे ताकि वास्तविकता सामने आ सके और हत्याकांड की मुख्य साजिशकर्ता किम्सी जैन को सजा दिला सके।