
– आरक्षण का मेरिट से टकराव नहीं बल्कि यह उसके वितरण प्रभाव को आगे बढ़ाता है – प्रतियोगी परीक्षाएं आर्थिक सामाजिक लाभों को प्रदर्शित नहीं करतीं : उच्चतम न्यायालय
उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को केंद्र सरकार को ओबीसी और ईडब्ल्यूएस वर्ग के लिए मेडिकल की आल इंडिया पीजी सीटों पर 27 और 10 फीसदी कोटा देने के लिए हरी झंडी दे दी। कोर्ट ने कहा कि आरक्षण का मेरिट से टकराव नहीं है बल्कि यह उसके वितरणीय प्रभाव को आगे बढ़ाता है।
जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह फैसला देते हुए कहा कि प्रतियोगी परीक्षाएं आर्थिक सामाजिक लाभों को प्रदर्शित नहीं करतीं जो कुछ ही वर्गों को उपलब्ध है, मेरिट को सामाजिक रूप से संदर्भित करना चाहिए। कोर्ट ने 8 जनवरी को दिए फैसले के विस्तृत कारण सुनाते हुए कहा कि जब मामले की संवैधानिक व्याख्या की जाती है तो न्यायिक औचित्य अदालत को कोटा को स्टे नहीं करने की अनुमति नहीं देता कि अभी काउंसलिंग शुरू नहीं हुई है।
गौरतलब है कि नील ओर्लियंस आदि ने जुलाई 2021 में उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर केंद्र सरकार के 29 जुलाई 2021 की अधिसूचना को चुनौती दी थी जिसमें नीट- पीजी की आल इंडिया कोटा सीटों पर ओबीसी और ईडब्ल्यूएस वर्ग को क्रमशः: 27 और 10 फीसदी आरक्षण करने के लिए कहा गया था।
कोर्ट ने कहा था कि इस समय न्यायिक दखल पहले से देर से चल रहे सत्र के प्रवेश में और देरी करेगा, इसके अलावा इससे अनावश्यक मुकदमेबाजी भी सामने आएगी। हम कोविड महामारी के बीच में हैं और देश को और डॉक्टरों की जरूरत है। कोर्ट ने यह भी कहा था कि याचिकाकर्ता ने सिर्फ आल इंडिया कोटा के मुद्दा ही नहीं उठाया है बल्कि केंद्र सरकार द्वारा ईडब्ल्यूएस के लिए सालाना आय आठ लाख रु तय करने के मानक का मुद्दा भी उठाया है। कोर्ट ने कहा कि यह मामला व्यापक सुनवाई की मांग करता है इसलिए इसे मार्च में सुनवाई के लिए रखा जाता है।
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